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________________ का विधान किया है। इस व्रत के आराधन से छठे व्रत द्वारा मर्यादित क्षेत्र में रहे हुए पदार्थों के उपभोग और परिभोग की भी मर्यादा हो जाती है। यह मर्यादा एक, दो, तीन दिन आदि के रूप में सीमित काल तक या यावजीवन के लिए भी की जा सकती है। उक्त मर्यादा के द्वारा पञ्चम व्रत के रूप में परिमित किए गए परिग्रह को और अधिक परिमित किया जाता है तथा अहिंसा की भावना को और अधिक विराट एवं प्रबल बनाया जाता है। यही इस की अणुव्रतसम्बन्धिनी गुणपोषकता है। उपभोग और परिभोग में आने वाली वस्तुएं तो अनेकानेक हैं तथापि शास्त्रकारों ने उन वस्तुओं का 26 बोलों में संग्रह कर दिया है। इन बोलों में प्रायः जीवन की आवश्यक सभी वस्तुएं संगृहीत कर दी गई हैं। इन बोलों की जानकारी से व्रतग्रहण करने वाले को बड़ी सुगमता हो जाती है। वह जब यह जान लेता है कि जीवन के लिए विशेषरूप से किन पदार्थों की आवश्यकता रहती है, तब उन की तालिका बना कर उन्हें मर्यादित करना उस के लिए सरंल / हो जाता है। अस्तु, 26 बोलों का विवरण निम्नोक्त है १-उल्लणिया-विधिपरिमाण-आर्द्र शरीर को या किसी भी आई हस्तादि अवयवों के पोंछने के लिए जिन वस्त्रों की आवश्यकता होती है, उन की मर्यादा करना। २-दन्तवणविधिपरिमाण-दान्तों को साफ करने के लिए जिन पदार्थों की आवश्यकता होती है, उन पदार्थों की मर्यादा करना। ३-फलविधिपरिमाण-दातुन करने के पश्चात् मस्तक और बालों को स्वच्छ तथा शीतल करने के लिए जिन वस्तुओं की आवश्यकता होती है, उन की मर्यादा करना, या बाल आदि धोने के लिए आंवला आदि फलों की मर्यादा करना या स्नान करने से पहले मस्तक आदि पर लेप करने के लिए आंवले आदि फलों की मर्यादा करना। ४-अभ्यङ्गनविधिपरिमाण-त्वचासम्बन्धी विकारों को दूर करने के लिए और रक्त को सभी अवयवों में पूरी तरह संचारित करने के लिए जिन तेल आदि द्रव्यों का शरीर पर मर्दन किया जाता है उन द्रव्यों की मर्यादा करना। ५-उद्वर्त्तनविधिपरिमाण-शरीर पर लगे हुए तेल की चिकनाहट को दूर करने तथा शरीर में स्फूर्ति एवं शक्ति लाने के लिए जो उबटन लगाया जाता है, उस की मर्यादा करना। ६-मज्जनविधिपरिमाण-स्नान के लिए जल तथा स्नान की संख्या का परिमाण करना। ७-वस्त्रविधिपरिमाण-पहनने ओढ़ने आदि के लिए वस्त्रों की मर्यादा करना। वस्त्रमर्यादा में लज्जारक्षक तथा शीतादि के रक्षक वस्त्रों का ही आश्रयण है, विकारोत्पादक 832 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [द्वितीय श्रुतंस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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