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________________ भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख-विपाक के नवम अध्ययन का यदि भदन्त ! यह (पूर्वोक्त) : अर्थ प्रतिपादन किया है तो भदन्त ! यावत् मोक्ष-सम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दशम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? अड्ढे०-यहां के बिन्दु से संसूचित पाठ का विवरण द्वितीय अध्याय में तथा-परिसा जाव गओ-यहां पठित जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ का विवरण सप्तम अध्ययन में यथास्थान दिया जा चुका है। तथा-जेटे जाव अडमाणे-यहां का जाव-यावत् पद -अन्तेवासी इन्दभूती नामं अणगारे गोयमसगोत्ते- से लेकर-चउणाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाईयहां तक के पदों का तथा-छटुं-छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तते णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेति, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाति-से लेकर-दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-यहां तक के पदों का, तथा-जेणेव वद्धमाणपुरे णगरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता वद्धमाणपुरे नगरे उच्चनीयमज्झिमकुलाइं-इन पदों का परिचायक है। अन्तेवासी इन्दभूती-इत्यादि पदों का अर्थ यथास्थान टिप्पण में, तथा-छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं-इत्यादि पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां भगवान् गौतम वीर प्रभु से पारणे के निमित्त वाणिजग्राम नगर में जाने की आज्ञा मांगते हैं, जब कि प्रस्तुत में वर्धमानपुर नगर में जाने की। नगरगत भिन्नता के अतिरिक्त और कोई अन्तर नहीं है / तथा-जेणेव वद्धमाणपुरेइत्यादि पदों का अर्थ है-जहां वर्धमानपुर नामक नगर था वहां पर चले जाते हैं और जा कर उच्च (धनी), नीच (निर्धन) तथा मध्यम (सामान्य) कुलों में.....। . ____ -सुक्खं भुक्खं-इत्यादि पदों का अर्थ अष्टमाध्याय में लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद एक पुरुष के विशेषण हैं, जब कि प्रस्तुत में एक नारी के / तथा-चिंता तहेव जाव एवं वयासी-यहां पठित चिन्ता शब्द से विवक्षित पाठ की सूचना चतुर्थाध्ययन में दी जा चुकी है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां एक पुरुष के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है, जब कि प्रस्तुत में एक नारी के सम्बन्ध में। तथा तहेव-तथैव पद का अर्थ है-वैसे ही, अर्थात् गौतम स्वामी उस स्त्री के सम्बन्ध में उक्त विचार करते हुए वर्द्धमानपुर नगर में उच्च (धनी), नीच (निर्धन) और मध्यम (सामान्य) कुलों में भ्रमण करते हुए यथेष्ट सामुदानिकगृहसमुदाय से प्राप्त भिक्षा को लेकर वर्धमानपुर नामक नगर के मध्य में होते हुए जहां भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे, वहां आते हैं, आकर भगवान् के निकट गमनागमनसम्बन्धी प्रतिक्रमण (कृत पाप का पश्चात्ताप) कर तथा आहारसम्बन्धी आलोचना (विचारणा या प्रायश्चित के लिए अपने दोषों को गुरु के सन्मुख रखना) की, आहार-पानी दिखाया, 754 ] श्री विपाक सूत्रम् / दशम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कन्ध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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