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________________ वे महल अभ्युद्गत-अत्यन्त उच्छ्रित-ऊँचे थे और मानो उन्होंने हंसना प्रारम्भ किया / हुआ हो अर्थात् वे अत्यधिक श्वेतप्रभा के कारण हंसते हुए से प्रतीत होते थे। मणियोंसूर्यकान्त आदि, सुवर्णों और रत्नों की रचनाविशेष से वे चित्र-आश्चर्योत्पादक हो रहे थे। वायु से कंपित और विजय की संसूचक वैजयन्ती नामक पताकाओं से तथा छत्रातिछत्रों (छत्र के ऊपर छत्र) से वे प्रासाद-महल युक्त थे। वे तुङ्ग-बहुत ऊँचे थे, तथा बहुत ऊंचाई के कारण उन के शिखर-चोटियां मानो गगनतल को उल्लंघन कर रही थीं। जालियों के मध्य भाग में लगे हुए रत्न ऐसे चमक रहे थे मानो कोई आंखें खोल कर देख रहा था अर्थात् महलों के चमकते हुए रत्न खुली आंखों के समान प्रतीत हो रहे थे। उन महलों की स्तूपिकाएं-शिखर मणियों और सुवर्णों से खचित थीं, उन में शतपत्र (सौ पत्ते वाले कमल) और पुण्डरीक (कमलविशेष) विकसित हो रहे थे, अथवा इन कमलों के चित्रों से वे चित्रित थे। तिलक, रत्न और अर्धचन्द्र-सोपानविशेष इन सब से वे चित्र-आश्चर्यजनक प्रतीत हो रहे थे। नाना प्रकार' की मणियों से निर्मित मालाओं से अलंकृत थे। भीतर और बाहर से चिकने थे। उन के प्रांगणों में सोने का सुन्दर रेत बिछा हुआ था। वे सुखदायक स्पर्श वाले थे। उन का रूप शोभा वाला था। वे प्रासादीय-चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय-जिन्हें बारम्बार देख लेने पर भी आंखें न थकें, अभिरूप-जिन्हें एक बार देख लेने पर भी पुनः दर्शन की लालसा बनी रहे और प्रतिरूप-जिन्हें जब भी देखा जाए तब ही वहां नवीनता ही प्रतिभासित हो, ऐसे थे। उन पांच सौ प्रासादों के लगभग मध्य भाग में एक महान भवन तैयार कराते हैं। प्रासाद और भवन में इतना ही अन्तर होता है कि प्रासाद अपनी लम्बाई की अपेक्षा दुगुनी ऊँचाई वाला होता है। अथवा अनेक भूमियों-मंजिलों वाला प्रासाद कहा जाता है जब कि भवन अपनी लम्बाई की अपेक्षा कुछ ऊंचाई वाला होता है, अथवा एक ही भूमि-मंजिल वाला मकान भवन कहलाता है। भवनसम्बन्धी वर्णक पाठ का विवरण निम्नोक्त है उस भवन में सैंकड़ों स्तम्भ-खम्भे बने हुए थे, उस में लीला करती हुई पुतलियां बनाई हुई थीं। बहुत ऊंची और बनवाई गई वज्रमय वेदिकाएं चबूतरे, तोरण-बाहर का द्वार उस में थे, जिन पर सुन्दर पुतलियां अर्थात् लकड़ी, मिट्टी, धातु, कपड़े आदि की बनी हुई स्त्री की आकृतियां या मूर्तियां जो विनोद या क्रीड़ा (खेल) के लिए हों, बनाई गईं थीं। उस भवन में विशेष आकार वाली सुन्दर और स्वच्छ जड़ी हुईं वैडूर्य मणियों के स्तम्भों पर भी पुतलियां बनी हुई थीं। अनेक प्रकार की मणियों, सुवर्णों तथा रत्नों से वह भवन खचित तथा उज्ज्वलप्रकाशमान हो रहा था। वहां का भूभाग समतल वाला और अच्छी तरह से बना हुआ, तथा. अत्यधिक रमणीय था। ईहामृग-भेड़िया, वृषभ-बैल, अश्व-घोड़ा, मनुष्य, मगर-मत्स्य, 682 ] श्री विपाक सूत्रम् / नवम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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