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________________ का अर्थ द्वितीय अध्याय में लिखा गया है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नगर का उल्लेख है जब कि प्रस्तुत में शौरिक नगर का। शेष वर्णन समान ही है। -अज्झथिए ५-यहां पर दिए गए 5 के अंक से विवक्षित पाठ की सूचना तृतीय अध्याय में दी जा चुकी है। तथा-पुरा जाव विहरति-यहां पठित जाव-यावत् पद - पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकन्ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे-इन पदों का परिचायक है। . -भगवंजाव पुव्वभवपुच्छा वागरणं-यहां पठित-जाव-यावत् पद-महावीरेतेणेव उवागच्छइ 2 समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामन्ते गमणागमणाए पडिक्कमइ 2 त्ता एसणमणेसणे आलोएइ 2 त्ता भत्तपाणं पडिदंसेति, समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति वन्दित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं भन्ते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते समाणे सोरियपुरे नयरे उच्चनीयमज्झिमकुले अडमाणे अहापजत्तं समुदाणं गहाय .. सोरियपुराओ-से लेकर-किमिकवले य वममाणं पासामि पासित्ता इमे अज्झत्थिए-से लेकर-जाव-विहरति-यहां तक के पदों का परिचायक है। तथा-पुव्वभवपुच्छा यह पदसे णं भन्ते ! पुरिसे पुव्वभवे के आसि?-से लेकर -पुरा पोराणाणं जाव विहरति-यहां तक के पदों का परिचायक है। वागरणं-का अर्थ है-भगवान् का उत्तररूप में प्रतिपादन। . भगवान् गौतम का भिक्षा लेकर आना, आकर आलोचना करना और साथ में ही उस दुःखी व्यक्ति के पूर्वभवसम्बन्धी वृत्तान्त को पूछना, इस बात को प्रमाणित करता है कि उस दृश्य से अनगार गौतम स्वामी इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपने पारणे का भी ध्यान नहीं रहा, और यदि रहा भी हो तो भी उस भयंकर अथच करुणाजनक दृश्य ने उन्हें इस बात पर विवश कर दिया कि पारणे से पूर्व ही उस बिचारे की जीवनी को अवगत कर लिया जाए, ऐसा ' समझना। . प्रस्तुत सूत्र में प्रस्तुत अध्ययन के प्रधान पात्रों का परिचय कराया गया है, और साथ में गौतम स्वामी द्वारा देखे गए एक दुःखी पुरुष का वर्णन तथा उसके विषय में गौतम स्वामी के प्रश्न का उल्लेख भी किया गया है। अब अग्रिम सूत्र में भगवान् के द्वारा प्रस्तुत किए गए उत्तर का वर्णन किया जाता है मूल-एवं खलु गोतमा ! तेणं कालेणं 2 इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे .. 1. अदूरसामन्ते इत्यादि पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। 2. ये पद पीछे पृष्ठ पर उल्लिखित हैं। अन्तर मात्र इतना है कि पडिनिक्खमति के स्थान पर पडिनिक्खमामि-यह समझ लेना। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / अष्टम अध्याय . [627
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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