________________ निमित्त कारण से संगृहीत होती है। निमित्त कारण को अधिक स्पष्ट करने के लिए एक स्थूल उदाहरण लीजिए कल्पना करो, एक कुंभकार घट-घड़ा बनाता है। घट पदार्थ में मिट्टी उसका मूलकारण * है, और कुम्भकार-कुम्हार, चाक, डोरी आदि सब उस में निमित्त कारण हैं / इसी भान्ति अन्य पदार्थों में भी उपादान और निमित्त इन दोनों कारणों की अवस्थिति बराबर चलती रहती है। शास्त्रों के परिशीलन से पता चलता है कि शुभाशुभ कर्मफल की प्राप्ति में अनेकानेक निमित्त उपलब्ध होते हैं। उन में देव-यक्ष भी एक होता है। दूसरे शब्दों में देवता भी शुभाशुभ कर्मफल के उपभोग में निमित्तकारण बन सकता है, अर्थात् देव उस में सहायक हो सकता देव की सहायता के शास्त्रों में अनेकों प्रकार उपलब्ध होते हैं। कल्पसूत्र में लिखा है कि हरिणगमेषी देव ने गर्भस्थ भगवान् महावीर का परिवर्तन किया था। अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र में लिखा है कि देव ने सुलसा और देवकी की सन्तानों का परिवर्तन किया था, अर्थात् देवकी की संतान सुलसा के पास और सुलसा की सन्ताने देवकी के पास पहुँचाई थीं। ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र में लिखा है कि अभयकुमार के मित्र देव ने अकाल में मेघ बना कर माता धारिणी के दोहद को पूर्ण किया था। उपासकदशांगसूत्र में लिखा है कि देव ने कामदेव श्रावक को अधिकाधिक पीड़ित किया था। इस के अतिरिक्त भगवान् महावीर को लगातार छ: महीने संगमदेवकृत उपसर्गों को सहन करना पड़ा था, इत्यादि अनेकों उदाहरण शास्त्रों में अवस्थित हैं। परन्तु प्रस्तुत में गङ्गादत्ता को जीवित पुत्र की प्राप्ति में उम्बरदत्त यक्ष ने क्या सहायता की है, इस के सम्बन्ध में सूत्रकार मौन हैं। हमारे विचार में तो प्रस्तुत में यही बात प्रतीत होती है कि गंगादत्ता के मृतवत्सात्व दोष के उपशमन का समय आ गया था और उस की कामना की पूर्ति करने वाला कोई पुण्य कर्म उदयोन्मुख हुआ। परिणाम यह हुआ कि उसे जीवित पुत्र की प्राप्ति हो गई। वह पुत्रप्राप्ति यक्ष के आराधन के पश्चात् हुई थी, इसलिए व्यवहार में वह उस की प्राप्ति में कारण समझा जाने लगा। रहस्यं तु केवलिगम्यम्। 1. स्थानांगसूत्र-के पंचम स्थान के द्वितीय उद्देश्य में लिखा है कि पुरुष के सहवास में रहने पर भी स्त्री 5 कारणों से गर्भ धारण नहीं करने पाती। उन कारणों में -पुरा वा देवकम्मणा-यह भी एक कारण माना है। वृत्तिकार के शब्दों में इस की व्याख्या-पुरा वा पूर्व वा गर्भावसरात् देवकर्मणा देवक्रियया देवानुभावेन शक्त्युपघातः स्यादिति शेषः। अथवा देवश्च कार्मणं च तथाविधद्रव्यसंयोगो देवकार्मणं तस्मादिति-इस प्रकार है अर्थात् गर्भावसर से पूर्व ही देवक्रिया के द्वारा गर्भ धारण की शक्ति का उपघात होने से, अथवा-देव और कार्मण-तंत्र आदि की विद्या अर्थात् जादू से गर्भधारण की शक्ति के विनाश कर देने से। तात्पर्य यह है कि-देवता रुष्ट हो कर गर्भधारण की सभी सामग्री उपस्थित होने पर भी गर्भको धारण नहीं होने देता। इस वर्णन में देवता शुभाशुभ कर्म के फल में निमित्त कारण बन सकता है-यह सुतरां प्रमाणित हो जाता है। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [609