________________ सयण-सम्बन्धि-परिजण-महिलाहिं-इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। इन का अर्थ हैमित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों एवं परिजनों की महिलाओं से। तथामित्र आदि पदों की व्याख्या द्वितीय अध्याय में की जा चुकी है। -पुप्फ जाव गहाय-यहां पठित जाव-यावत् पद से -वत्थगन्धमल्लालंकारंइस पाठ का तथा-पहाया जाव पायच्छित्ताओ-यहां पठित जाव-यावत् पद सेकयबलिकम्मा, कयकोउयमंगल-इन पदों का ग्रहण करना चाहिए। -कयबलिकम्माआदि पदों का अर्थ द्वितीय अध्याय में किया जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां ये पद एक पुरुष के विशेषण हैं, जब कि प्रस्तुत में अनेक स्त्रियों के। अतः लिंगगत तथा वचनगत अर्थभेद की भावना कर लेनी चाहिए। ___ -आसादन्ति ४-यहां पर दिये गए 4 के अंक से-विसाएन्ति, परिभाएन्ति परिभुंजेन्ति-इन पदों का ग्रहण समझना चाहिए। अर्थात् आस्वादन (थोड़ा खाना, बहुत छोड़ना इक्षुखण्ड गन्ने की भान्ति), विस्वादन (अधिक खाना, थोड़ा छोड़ना, खजूर की भान्ति), परिभाजन-दूसरों को बांटना तथा परिभोग-(सब खा जाना, रोटी आदि की भांति) करती -कल्लं जाव जलन्ते- यहां पठित जाव-यावत् पद से विवक्षित पाठ पीछे इसी अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा-ताओ जाव विणेति-यहां पठित जाव-यावत् पद से पीछे पढ़े गए -अम्मयाओ जावफले, जाओणं विउलं असणं 4 उवक्खडावेंति 2 बहूहिं मित्त जाव परिवुडाओ-से लेकर-आसादेंति 4 दोहलं-यहां तक के पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। -बहूहिं जाव बहाया-यहां के जाव-यावत् पद से पीछे पढ़े गए-मित्त जाव परिवुडाओ तं विउलं असणं 4 सुरं 6 पुष्फ जाव गहाय पाडलिसंडं णगरं मझमझेणं पडिनिक्खमन्ति 2 जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छन्ति 2 पुक्खरिणिं ओगाहंति २इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है। _ -कय०-यहां के बिन्दु से -कोउयमंगलपायच्छित्ता-इस पाठ का ग्रहण करना चाहिए। इस का अर्थ पदार्थ में किया जा चुका है। ___ "-उम्बरदत्तजक्खाययणे जाव धूवं-" यहां पठित जाव-यावत् पद से पीछे पढ़े गए "-तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता उंबरदत्तस्स जक्खस्स आलोए पणामं करेति 2 त्ता लोमहत्थं परामुसति परामुसित्ता उंबरदत्तं जक्खं लोमहत्थएणं पमजति पमजित्ता दगधाराए अब्भुक्खेति अब्भुक्खित्ता पम्हल गायललुि ओलूहेति ओलूहित्ता सेयाई वत्थाई 602] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध