________________ तदनन्तर / अहं-मैं / दोच्चं पि-दूसरी बार / छट्ठक्खमणपारणए-षष्ठक्षमण के पारणे के लिए, पाटलिपंड नगर के। दाहिणिल्लेणं-दक्षिण दिशा के। दारेणं-द्वार से प्रवेश किया, तो मैंने। तहेव-तथैव-पूर्ववत् अर्थात् उसी पुरुष को देखा। तच्चं पि-तीसरी बार। छटुक्खमणपारणए-षष्ठक्षमण के पारणे में। पच्चत्थिमेणं-उसी नगर के पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश किया। तहेव-तथैव-पूर्व की भांति / तए णंतदनन्तर। अहं-मैं। चउत्थं पि छट्ठक्खमणपारणे-चौथी बार षष्ठक्षमण के पारणे के निमित्त भी। उत्तरदारेणं-पाटलिपंड के उत्तर दिशा के द्वार से। अणुप्पविसामि-प्रविष्ट हुआ तो। तं चेव-उसी। पुरिसं-पुरुष को। पासामि-देखता हूँ, जोकि। कच्छुल्लं-कंडू के रोग से अभिभूत हुआ। जाव-यावत्। वित्तिं कप्पेमाणे-भिक्षावृत्ति से आजीविका करता हुआ। विहरति-समय बिता रहा था, उसे देखकर। ममं-मुझे। चिंता-विचार उत्पन्न हुआ, तदनन्तर / पुव्वभवपुच्छा-गौतम स्वामी ने उसके पूर्वभव को पूछा अर्थात् भगवन् ! यह पुरुष पूर्व जन्म में कौन था, इस प्रकार का प्रश्न गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से किया, इस के उत्तर में भगवान्। वागरेति-कहने लगे। मूलार्थ-तदनन्तर भगवान् गौतम स्वामी ने दूसरी बार षष्ठक्षमण-बेले के पारणे के निमित्त प्रथम पौरुषी-प्रथम पहर में यावत् भिक्षार्थ गमन करते हुए पाटलिपंड नगर में दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहां पर भी उन्होंने कंडू आदि रोगों से युक्त उसी पुरुष को देखा और वे भिक्षा ले कर वापिस आए। शेष सभी वृत्तान्त पूर्व की भान्ति जानना अर्थात् आहार करने के अनन्तर वे तप और संयम के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। तदनन्तर भगवान् गौतम तीसरी बार षष्ठक्षमण के पारणे के निमित्त उक्त नगर में पश्चिम दिशा के द्वार से प्रवेश करते हैं, तो वहां पर भी वे उसी पुरुष को देखते हैं। इसी प्रकार चौथी बार षष्ठक्षमण के पारणे के लिए पाटलिषंड के उत्तरदिगद्वार से प्रवेश करते हैं, तब भी उन्होंने उसी पुरुष को देखा, देखकर उन के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो ! यह पुरुष पूर्वकृत अशुभ कर्मों के कटु विपाक को भोगता हुआ कैसा दुःखपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा है ! यावत् वापिस आकर उन्होंने भगवान् से जो कुछ कहा, वह निम्नोक्त है भगवन् ! मैंने षष्ठक्षमण के पारणे के निमित्त यावत् पाटलिपंड नगर की ओर प्रस्थान किया और नगर के पूर्वदिग्द्वार से प्रवेश करते हुए मैंने एक पुरुष को देखा, जो कि कण्डूरोग से आक्रान्त यावत् भिक्षावृत्ति से आजीविका कर रहा था।फिर दूसरी बार षष्ठक्षमण के पारणे के निमित्त भिक्षा के लिए उक्त नगर के दक्षिण दिशा के द्वार से प्रवेश किया तो वहां पर भी उसी पुरुष को देखा। एवं तीसरी बार जब पारणे के निमित्तं 566 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध