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________________ श्वेत खून रसिका कहलाता है। पूय-पीव का नाम है। थिवथिव शब्द करने वाला व्यक्ति थिविथिवायमान कहलाता है। तात्पर्य यह है कि रसिका और पूय के बहने से वह व्यक्ति थिव-थिव शब्द कर रहा था। १६-व्रणमुखकृम्युत्तुद्यमानप्रगलत्पूयरुधिर-इस समस्त पद के व्रणमुख, कृमिउत्तुद्यमान, प्रगलत्पूयरुधिर, ये तीन विभाग किए जा सकते हैं। व्रण-घाव-जख्म का नाम है। मुख-अग्रभाग को कहते हैं। तब व्रणमुख शब्द से व्रण का अग्रभाग-यह अर्थ फलित हुआ। कृमियों-कीड़ों से उत्तुद्यमान-पीड़ित, कृम्युतुद्यमान कहा जाता है। जिस के पूय-पीव और रुधिर-खून बह रहा है, उसे प्रगलत्पूयरुधिर कहते हैं / अर्थात् उस व्यक्ति के कीड़ों से अत्यन्त व्यथित व्रण-मुखों से पीव और रुधिर बह रहा था। व्रणमुखानि कृमिभिरुत्तुद्यमानानि ऊर्ध्वं व्यथ्यमानानि प्रगलत्पूयरुधिराणि च यस्य स तथा तमिति वृत्तिकारोऽभयदेवसूरिः। __कहीं पर-वणमुहकिमिउन्नुयंतपगलंतपूयरुहिरं-(व्रणमुखकम्युन्नुदत्प्रगलत्पूयरुधिरम्, व्रणमुखात् कृमयः उन्नुदन्तः- प्रगलन्ति पूयरुधिराणि च यस्य स तथा तम्। इदमुक्तं भवति-यस्य व्रणमुखात् कृमयो बहिनिःसरन्ति उत्पत्य पतन्ति पूयरुधिराणि च प्रगलन्ति तमित्यर्थः)-ऐसा पाठान्तर भी उपलब्ध होता है। इस का अर्थ है-जिस के घावों के अग्रभाग से कीड़े गिर रहे थे और पीव तथा रुधिर भी बह रहा था। १७-१लालाप्रगलत्कर्णनास-इस पद में प्रयुक्त हुए लाला शब्द का कोषों में यद्यपि मुंह का पानी (लार) अर्थ किया गया है, परन्तु वृत्तिकार के मत में उसका क्लेदतन्तु यह अर्थ पाया जाता है। जो कि उपयुक्त ही प्रतीत होता है। कारण कि-कलेदतन्तु यह समस्त शब्द है। इस में क्लेद का प्रयोग-नमी (सील), फोड़े का बहाव और कष्ट-पीड़ा, इन तीन अर्थों में होता है। तथा तन्तु शब्द का -डोरा, सूत, तार, डोरी, मकड़ी का जाला, तांत, सन्तान, जाति, जलजन्तुविशेष, इत्यादि २अर्थों में होता है। प्रकृत में क्लेद शब्द का "फोड़े का बहाव" यह अर्थ और तन्तु का "तार" यह अर्थ ही अभिमत है। तब क्लेदतन्तु का -व्रणफोड़े के बहाव की तारें" यह अर्थ निष्पन्न हुआ, जो कि प्रकरणानुसारी होने से उचित ही है क्योंकि लार तो मुंह से गिरती हैं, नाक और कान से नहीं। फोड़ों के बहाव की तारों से जिसके कान और नासिका गल गए हैं, उसे लालाप्रगलत्कर्णनास कहते हैं। ___कहीं पर -लालामुहं पगलंतकण्णनासं-ऐसा पाठान्तर भी मिलता है। इसका अर्थ निम्नोक्त है ' 1. लालाभिः क्लेदतन्तुभिः प्रगलन्तौ कर्णी नासा च यस्य स तथा तमिति-वृत्तिकारः। 2. देखो-संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ-पृष्ठ 347 (प्रथम संस्करण)। 560 ] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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