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________________ आरम्भ किया, अब निम्नलिखित सूत्र में उस का उल्लेख करते हैं मूल-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे णगरे। वणसंडे उज्जाणे। उम्बरदत्ते जक्खे। तत्थ णं पाडलिसंडे णगरे सिद्धत्थे राया। तत्थ णं पाडलिसंडे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था, अड्ढे / गंगादत्ता भारिया, तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगादत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था, अहीण / तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ समोसरणं, . परिसा जाव गओ। छाया-एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये पाटलिपंडं नगरं / वनषण्डमुद्यानम्। उम्बरदत्तो यक्षः। तत्र पाटलिषंडे नगरे सिद्धार्थो राजा / तत्र पाटलिषंडे सागरदत्तः सार्थवाहोऽभूद्, आढ्य / गंगादत्ता भार्या / तस्य सागरदत्तस्य पुत्रो गंगादत्तायाः भार्यायाः आत्मजः, उम्बरदत्तो नाम दारकोऽभूदहीन / तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतः समवसरणं, परिषद् यावत् गतः। पदार्थ-एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। जम्बू !-हे जम्बू ! तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। पाडलिसंडे-पाटलिषंड। णगरे-नगर था।वणसंडे-वनषंड नामक। उजाणेउद्यान था, वहां। उम्बरदत्ते-उम्बरदत्त नामक। जक्खे-यक्ष था अर्थात् उसका स्थान था। तत्थ णं-उस। पाडलिसंडे-पाटलिषण्ड। णगरे-नगर में। सिद्धत्थे-सिद्धार्थ नामक। राया-राजा था। तत्थ णं-उस। पाडलिसंडे-पाटलिषण्ड नगर में। सागरदत्ते-सागरदत्त नाम का। सत्थवाहे-सार्थवाह-यात्री व्यापारियों का नायक। होत्था-था। अड्ढे-जो कि धनाढ्य यावत् अपने नगर में बड़ा प्रतिष्ठित था। गंगादत्ता भारिया-उस की गंगादत्ता नाम की भार्या थी। तस्स णं-उस। सागरदत्तस्स-सागरदत्त सार्थवाह का। पुत्ते-पुत्र। गंगादत्ताए भारियाए-गंगादत्ता भार्या का। अत्तए-आत्मज-पुत्र / उंबरदत्ते-उम्बरदत्त / नामनामक। दारए-बालक। होत्था-था, जो कि। अहीण-अन्यून एवं निर्दोष पंचेन्द्रियशरीर से विशिष्ट था। तेणं कालेणं २-उस काल और उस समय में। समणस्स-श्रमण। भगवओ-भगवान् महावीर स्वामी का। समोसरणं-समवसरण हुआ अर्थात् भगवान वहां उद्यान में पधारे। परिसा-परिषद् / जाव-यावत्। गओ-नागरिक और राजा चला गया। मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू ! उस काल और उस समय में पाटलिपंड नाम का एक सुप्रसिद्ध नगर था। वहां वनषंड नामक उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का स्थान था। उस नगर में महाराज सिद्धार्थ राज्य किया करते थे। पाटलिषंड नगर में सागरदत्त नाम का एक धनाढ्य, जो कि उस नगर का बड़ा प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता था, सार्थवाह रहता था। उस की गंगादत्ता नाम की भार्या थी। उनके अन्यून 554] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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