SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अह सत्तमं अज्झयणं अथ सप्तम अध्याय मानव संसार का सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम प्राणी माना जाता है, परन्तु जरा विचार कीजिए कि इस में सर्वश्रेष्ठता किस बात की है ? अर्थात् मानव के पास ऐसी कौन-सी वस्तु है कि जिस के बल पर यह इतना श्रेष्ठ बन गया है ? - क्या मानव के पास शारीरिक शक्ति बहुत बड़ी है या यह पूंजीपति है जिस के कारण यह मानव सर्वश्रेष्ठता के पद का भाजन बना हुआ है ? नहीं-नहीं, इन बातों में से कोई भी ऐसी बात नहीं है जो इस की महानता का कारण बन रही हो। क्योंकि संसार में हाथी आदि ऐसे अनेकानेक विराटकाय प्राणी अवस्थित हैं, जिन के सन्मुख मानव का शारीरिक बल कुछ भी मूल्य नहीं रखता, यह उन के सामने तुच्छ है, नगण्य है। .. धन मानव की उत्तमता का कारण नहीं बन सकता, क्योंकि भारत के ग्रामीण लोगों का "जहां कोई बड़ा सांप रहता है, वहां अवश्य कोई धन का बड़ा खज़ाना होता है" यह विश्वास बतलाता है कि धन से चिपटने वाला मानव सांप ही होता है, मनुष्य नहीं। इसके अतिरिक्त धन के कुपरिणामों के अनेकानेक उदाहरण इतिहास में उपलब्ध होते हैं। .. रावण के पास कितना धन था ? सारी लंका सोने की बनी हुई थी। यादवों की द्वारिका का निर्माण देवताओं के हाथों हुआ था, वह भी हीरे, पन्ने आदि जवाहरात से। भारत के धन वैभव पर मुग्ध हुए यूनान के सिकन्दर ने लाखों मनुष्यों का संहार किया। मन्दिरों को तोड़ करोड़ों का धन भारत से लूटा। उसे अपने ऐश्वर्य का कितना घमण्ड था। ऐसे ही दुर्योधन, कोणिक आदि अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं, परन्तु हुआ क्या ?, सोने की लंका ने रावण को राक्षस बना दिया और स्वर्ण और रत्नों से निर्मित द्वारिका ने यादवों को नरपशु। सिकन्दर के धनवैभव से देश संत्रस्त हो उठा था। दुर्योधन महाभारत के भीषण युद्ध का मूल बना। कोणिक ने अपने पूज्य पिता श्रेणिक को पिंजरे का कैदी बना डाला था। सारांश यह है कि धन के अतिरेक ने उन सब को अन्धा बना दिया था, उन के विवेक चक्षु ज्योतिर्विहीन हो चुके प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / सप्तम अध्याय [551
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy