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________________ दुज्जोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्स-चारकपाल के पास। बहवे-अनेक। वेणुलयाण य-वेणुलताबांस के चाबुक। वेत्तलयाण य-वेत्रलता-बैंत के चाबुकों / चिंचालयाण-इमली वृक्ष के चाबुकों। छिवाण य-चिक्कण चर्म के कोड़े। कसाण य-चर्मयुक्त चाबुक। वायरासीण य-वल्करश्मि अर्थात् वृक्षों की त्वचा से निर्मित चाबुक, उन के। पुंजा-समूह तथा। णिगरा य-ढेर। चिट्ठन्ति-पड़े रहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन / चारगपालस्स-चारकपाल के पास। बहवे-अनेकविध। सिलाण य-शिलाओं। लउडाण य-लकड़ियों। मुग्गराण य-मुद्गरों। कणंगराण य-कनंगरों-जल में चलने वाले जहाज़ आदि को स्थिर करने वाले शस्त्रविशेषों के। पुंजा-पुंज-शिखरबद्ध राशि। णिगरा य-निकरशिखररहित ढेर।चिट्ठन्ति-रक्खे हुए थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन / चारगपालस्स-चारकपाल के पास। बहवे-अनेक। तंतीण य-तंत्रियों-चमड़े की डोरियों। वरत्ताण य-एक प्रकार की रस्सियों। वागरन्जूण य-वल्करज्जुओं-वृक्षों की त्वचा से निर्मित रस्सियों। वालरज्जूण य-केशों से निर्मित रज्जुओं। सुत्तरज्जूण य-सूत की रस्सियों के। पुंजा-पुंज।णिगरा य-निकर-ढेर। सण्णिक्खित्ता-रक्खे।चिट्ठन्तिरहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्स-चारकपाल के पास। बहवे-अनेक। असिपत्ताण य-कृपाणों। करपत्ताण य-आरों। खुरपत्ताण य-क्षुरकों-उस्तरों। कलम्बचीरपत्ताण य और कलंबचीर पत्र नामक शस्त्रविशेषों के। पुंजा-पुंज। णिगरा य-और निकर-ढेर। चिट्ठन्ति-रहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन / चारगपालस्स-चारकपाल के पास / बहवे-अनेक। लोहखीलाण य-लोहे के कीलों। कडसक्कराण य-बांस की शलाकाओं-सलाइयों तथा। चम्मपट्टाण य-चर्मपट्टोंचमड़े के पट्टों। अलपट्टाण य-और अलपट्टों अर्थात् बिच्छु की पूंछ के आकार जैसे शस्त्रविशेषों के। पुंजा-सशिखर समूह। णिगरा य-सामान्य समूह। चिन्ति-रहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्सदुर्योधन / चारगपालस्स-चारकपाल के पास। बहवे-अनेक। सूईण य-सूइयों के, तथा। डंभणाण यदम्भनों अर्थात् अग्नि में तपा कर जिन से शरीर में दाग दिया जाता है-चिन्ह किया जाता है, इस प्रकार की लोहमय शलाकाओं के, तथा। कोट्टिल्लाण य-कौटिल्यों-लघु मुद्गर-विशेषों के। पुंजा-पुञ्ज / णिगरा य-और निकर। चिट्ठन्ति-रहते थे। तस्स णं-उस। दुजोहणस्स-दुर्योधन। चारगपालस्स-चारकपाल के। बहवे-अनेक। सत्थाण य-शस्त्रविशेषों। पिप्पलाण य-पिप्प्लों-छोटे-छोटे छुरों। कुहाडाणकुठारों-कुल्हाड़ों। नहछेयणाण य-नखच्छेदकों-नहेरनों। दब्भाण य-और दर्भ-डाभों अथवा दर्भ के अग्रभाग की भांति तीक्ष्ण हथियारों के। पुंजा-पुंज। णिगरा य-निकर। चिट्ठन्ति-रहते थे। मूलार्थ-हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में सिंहपुर नाम का एक ऋद्ध, स्तिमित, और समृद्ध नगर था। वहां सिंहरथ नाम का राजा राज्य किया करता था। उसका दुर्योधन नाम का एक चारकपालकारागृहरक्षक-जेलर था। जो कि अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द-कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था। उसके निम्नोक्त चारकभांड-कारागार के उपकरण थे। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / षष्ठ अध्याय [521
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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