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________________ स्वामी से विपाकश्रुत के चतुर्थ अध्ययन का अर्थ सुनने की इच्छा प्रकट की थी। आर्य सुधर्मा स्वामी ने श्री जम्बू स्वामी की इच्छानुसार प्रस्तुत चौथे अध्ययन का वर्णन कह सुनाया, जो कि पाठकों के सन्मुख है। इस पूर्वप्रतिपादित वृत्तान्त का स्मरण कराने के लिए ही सूत्रकार ने निक्खेवो-निक्षेप यह पद दिया है। निक्षेप शब्द का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह द्वितीय अध्याय में कर दिया गया है। प्रस्तुत में निक्षेप शब्द से सूत्रकार को जो सूत्रांश अभिमत है, वह निनोक्त .. "एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं दुहविवागाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि"-अर्थात् हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के चतुर्थ अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। इस प्रकार मैं कहता हूं। तात्पर्य यह है कि जैसा भगवान से मैंने सुना है वैसा तुमको सुना दिया है। इस में मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है। -जोव्वण भविस्सति-यहां के बिन्दु से-जोव्वणगमणुप्पत्ते अलंभोगसमत्थे यावि-इस अवशिष्ट पाठ का बोध होता है। इस का अर्थ है-युवावस्था को प्राप्त तथा भोग भोगने में भी समर्थ होगा। ___-विण्णाय. जोव्वणगमणुप्पत्ता-यहां का बिन्दु-परिणयमेत्ता-इस पाठ का परिचायक है। इस पाठ का अर्थ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है अन्तर मात्र इतना है कि वहां यह एक बालक का विशेषण है, जब कि यहां एक बालिका का। ___-अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे-यहां के जाव-यावत् पद से संसूचित पाठ प्रथम अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा-एयकम्मे ४-यहां दिए गए 4 के अंक से विवक्षित पाठ का उल्लेख द्वितीय अध्याय के टिप्पण में किया गया है। -तहेव जाव पुढवीए०-यहां का जाव-यावत् पद प्रथम अध्याय में दिए गए-से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववजिहिति, तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसियाए-से लेकर-वाउ० तेउ आउ०–इत्यादि पदों का परिचायक है। तथा पुढवीए०यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ तृतीय अध्याय में लिखा जा चुका है। "-बोहिं, पव्वजाल, सोहम्मे कप्पे०, महाविदेहे०, सिज्झिहिति ५-इन पदों सेबुझिहिति 2 त्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिति।से णं भविस्सइ अणगारे इरियासमिते भासासमिते एसणासमिते आयाणभण्डमत्तनिक्खेवणासमिते उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिट्ठावणिया-समिते मणसमिते वयसमिते कायसमिते मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी। से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / पंचम अध्याय [477
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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