________________ पांचों धायमाताओं से पोषित हुआ शकट कुमार युवावस्था को प्राप्त हुआ तब पिता ने अर्थात् सुभद्र सार्थवाह ने विदेश-यात्रा की तैयारी की। दुर्दैववशात् समुद्रयात्रा में उसका जहाज़ समुद्र में डूब गया और वह वहां परलोक को सिधार गया। शकट कुमार ने उसका सम्पूर्ण और्द्धदैहिक कर्म किया। तदनन्तर उसकी माता भी पतिवियोगजन्य दुःख को अधिक काल तक न सह सकी। परिणामस्वरूप वह भी इस असार संसार से चल बसी। उस समय प्रायः व्यापार करने वालों का यह नियम होता था कि जिस समय व्यापार को बढ़ाते थे अथवा यूं कहिए कि व्यापार के निमित्त जब अपने देश को छोड़ कर विदेश में जाना होता था तो अपना सारा धन और हो सके तो अन्य नागरिकों से पर्याप्त ऋण लेकर अपने जहाज को माल से भर लेते और व्यापार के लिए प्रस्थान कर देते। सुभद्र नामक सार्थवाह ने भी ऐसा ही किया था। उसने वहां के धनियों से काफी ऋण ले रक्खा था। इसलिए सुभद्र सेठ और भद्रादेवी की मृत्यु ने उन सब को सचेत कर दिया, वे अपने दिए हुए धन को किसी न किसी रूप में प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगे। जिस को जो कुछ मिला वह ले गया। इसी में सुभद्र सेठ की सारी चल सम्पत्ति समाप्त हो गई। अवशेष उस की जो अचल सम्पत्ति थी, उसके लिए लेनदारों ने न्यायालय की शरण ली और राजाज्ञा के अनुसार सुभद्र की अचल सम्पत्ति पर भी अपना अधिकार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप शकट कुमार को अपने घर से भी निकलना पड़ा। घर से निकल जाने पर मातृपितृविहीन शकट कुमार निरंकुश हाथी या बेलगाम घोड़े की तरह स्वछन्द फिरने लगा। उसकी बैठक ऐसे पुरुषों में हो गई जो कि जुआरी, शराबी और परस्त्रीलम्पट थे। उनके सहवास में आकर शकट कुमार भी उन्हीं दुर्गुणों का भाजन बन गया। उसके रहने का न तो कोई नियत स्थान था और न कोई योग्य व्यक्ति उसे किसी प्रकार का आश्रय देता था। वह प्रथम जितना धन-सम्पन्न, सुखी और प्रतिष्ठा-प्राप्त किए हुए था, उतना ही निर्धन, दुःखी और प्रतिष्ठाशून्य हो रहा था। यह तो हुई शकट कुमार की बात / अब पाठक साहंजनी नगरी की सुप्रसिद्ध सुदर्शना वेश्या की ओर भी ध्यान दें। वह एक निपुण कलाकार होने के अतिरिक्त रूपलावण्य में भी अद्वितीय थी। कामवासनावासित अनेक धनी, मानी युवक उसका आतिथ्य प्राप्त करने की लालसा से धन की थैलियां ले कर उसके दरवाज़े पर भटका करते थे। परन्तु उसके पास जाने या उससे बातचीत करने और सहवास में आने का अवसर तो किसी विरले को ही प्राप्त होता था। इधर शकट कुमार को माता और पिता छोड़ गए, धन सम्पत्ति ने उससे मुख मोड़ . लिया। परन्तु उसके शरीरगत स्वाभाविक सौन्दर्य एवं सभ्यजनोचित व्यवहार-कुशलता ने उस 460 ] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध