________________ प्रस्तुत कथासंदर्भ में जो अजादि पशुओं के शतबद्ध तथा सहस्रबद्ध यूथ बाड़े में बन्द रहते थे, ऐसा लिखा है। इस से सूत्रकार को यही अभिमत प्रतीत होता है कि यूथों में विभक्त अजादि पशु सैंकड़ों तथा हज़ारों की संख्या में बाड़े में अवस्थित रहते थे। यहां यूथ शब्द का ‘स्वतन्त्ररूप से अज आदि प्रत्येक पद के साथ अन्वय नहीं करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि अजों के शतबद्ध तथा सहस्रबद्ध यूथ, भेड़ों के शतबद्ध तथा सहस्रबद्ध यूथ, इसी प्रकार गवय आदि शब्दों के साथ यूथ पद का सम्बन्ध नहीं जोड़ना चाहिए, क्योंकि सब पदों का यदि स्वतन्त्ररूपेण यूथ के साथ सम्बन्ध रखा जाएगा, तो सिंह शब्द के साथ भी यूथ पद का अन्वय करना पड़ेगा, जो कि व्यवहारानुसारी नहीं है, अर्थात् ऐसा देखा या सुना नहीं गया कि हज़ारों की संख्या में शेर किसी बाड़े में बंद रहते हों। व्यवहार तो-१सिंहों के लेहंडे नहीं-इस अभियुक्तोक्ति का समर्थक है। अतः प्रस्तुत में-यूथों में विभक्त अजादि पशुओं की संख्या सैंकड़ों तथा हज़ारों की थी-यह अर्थ समझना चाहिए। इस अर्थ में किसी पशु की स्वतन्त्र संख्या का कोई प्रश्न नहीं रहता। रहस्यं तु केवलिगम्यम्। कोषकारों के मत में पसय शब्द देशीय भाषा का है, इस का अर्थ-मृगविशेष या मृगशिशु होता है। अन्य पशुओं के संसूचक शब्दों का अर्थ स्पष्ट ही है। तथा "-दिण्णभतिभत्तवेयणा- 'की व्याख्या तृतीय अध्याय में कर दी गई है। , -महया०- यहां के बिन्दु से विवक्षित पाठ का वर्णन द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुका है। तथा–अड्ढे०- यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ द्वितीय अध्याय में लिखा जा चुके हैं। तथा-अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे-यहां के जाव-यावत् पद से अभीष्ट पदों का वर्णन प्रथम अध्याय में किया गया है। तथा-अए जाव महिसे यहां के जाव-यावत् पदों से-एले य रोज्झे य वसभे य ससए य पसए य सूयरे य सिंघे य हरिणे य मऊरे य-इन पदों का ग्रहण करना अभिमत है। इसी प्रकार-अयाण य जाव महिसाण-यहां का जाव-यावत् पद-एलाण य रोज्झाण य वसभाण य ससयाण य-इत्यादि पदों का, तथा-अयमंसाई जाव महिसमंसाइं-यहां का जाव-यावत् पद -एलमंसाइं य रोज्झमंसाइं य वसभमंसाई य-इत्यादि पदों का परिचायक है। इन में मात्र विभक्तिगत भिन्नता है, तथा मांस शब्द अधिक प्रयुक्त हुआ है। तवक, कवल्ली, कन्दु और भर्जनक आदि शब्दों की व्याख्या तृतीय अध्याय में की जा चुकी है, तथा-सुरं च ५-यहां दिए गए 5 के, और-आसादेमाणे ४-यहां दिए गए 1. सिंहों के लेहंडे नहीं, हंसों की नहीं पांत। लालों की नहीं बोरियां, साधन चलें जमात॥ प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / चतुर्थ अध्याय [453