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________________ चोरसेनापति ने उन कौटुम्बिक पुरुषों को उत्तर में इस प्रकार कहा हे भद्र पुरुषो ! मैं स्वयं ही पुरिमताल नगर में आऊंगा। तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उन कौटुम्बिक पुरुषों का उचित सत्कार कर उन्हें विदा किया-वापिस भेज दिया। ___टीका-एक दिन नीतिकुशल महाबल नरेश ने स्वकार्यसिद्धि के लिए अपने प्रधान मंत्री को बुलाकर कहा कि पुरिमताल नगर के किसी प्रशस्त विभाग में एक कूटाकारशाला का निर्माण कराओ, जो कि हर प्रकार से अद्वितीय हो और देखने वालों का देखते-देखते जी न भर सके। उस में स्तम्भों की सजावट इतनी सुन्दर और मोहक हो कि दर्शकों की टिकटिकी बंन्ध जाए। - नृपति के आदेशानुसार प्रधान मंत्री ने शाला निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया और प्रान्त भर के सर्वोत्तम शिल्पियों को इस कार्य में नियोजित कर दिया गया। मंत्री की आज्ञानुसार बड़ी शीघ्रता से कूटाकार-शाला का निर्माण होने लगा और वह थोड़े ही समय में बन कर तैयार हो गई। प्रधान मंत्री ने महाराज को उसकी सूचना दी और देखने की प्रार्थना की। महाबल नरेश ने उसे देखा और वे उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए। द्रव्य में बड़ी अद्भुत शक्ति है, वह सुसाध्य को दुःसाध्य और दुःसाध्य को सुसाध्य बना देता है। पुरिमताल नगर की यह कूटाकारशाला अपनी कक्षा की एक ही थी। उस का निर्माण जिन शिल्पियों के हाथों से हुआ वे भारतीय शिल्प-कला तथा चित्रकला के अतिरिक्त विदेशीय शिल्पकला में भी पूरे-पूरे प्रवीण थे। उन्होंने इस में जिस शिल्प और चित्रकला का प्रदर्शन कराया वह भी अपनी कक्षा का एक ही था। सारांश यह है कि इस कुंटाकारशाला से जहां पुरिमताल नगर की शोभा में वृद्धि हुई वहां महाबल नरेश की कीर्ति में भी चार चांद लग गए। .. तदनन्तर इस कूटाकार-शाला के निमित्त महाबल नरेश ने दस दिन के एक उत्सव का आयोजन कराया, जिस में आगन्तुकों से किसी भी प्रकार का राजदेय-कर महसूल वगैरह लेने का निषेध कर दिया गया था। महाबल नरेश ने अपने अनुचरों को बुला कर जहां उक्त उत्सव में सम्मिलित होने के लिए अन्य प्रान्तीय प्रतिष्ठित नागरिकों को आमंत्रित करने का आदेश दिया, वहां चोरपल्ली के चोरसेनापति अभग्नसेन को भी बुलाने को कहा। अभग्नसेन के लिए राजा महाबल का विशेष आदेश था। उन्होंने अनुचरों से निम्नोक्त शब्दों में निवेदन करने की आज्ञा दी.. महाराज ने एक अतीव रमणीय और दर्शनीय कूटाकारशाला तैयार कराई है, वह अपनी कक्षा की एक ही है। उस के उपलक्ष्य में एक बृहद् उत्सव का आयोजन किया गया सबम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [415
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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