________________ राजा के विद्यमान रहते भी यदि अशान्ति एवं उपद्रव हो जाए तो जब तक अशान्ति रहे तब तक अस्वाध्याय रखना चाहिए। शांति एवं व्यवस्था हो जाने के बाद भी एक अहोरात्रि के लिए अस्वाध्याय रखा जाता है। राजमंत्री की, गाँव के मुखिया की, शय्यातर की तथा उपाश्रय के आस-पास में सात घरों के अन्दर अन्य किसी की मृत्यु हो जाए तो एक दिन रात के लिए अस्वाध्याय रखना चाहिए। (19) राजव्युद्ग्रह-राजाओं के बीच संग्राम हो जाए तो शान्ति होने तक तथा उस के बाद भी एक अहोरात्र तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। (२०)औदारिकशरीर-उपाश्रय में पंचेन्द्रिय तिर्यंच का अथवा मनुष्य का निर्जीव शरीर पड़ा हो तो सौ हाथ के अन्दर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ये दश औदारिक-सम्बन्धी अस्वाध्याय हैं / चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण को औदारिक अस्वाध्याय में इसलिए गिना है कि उन के विमान पृथ्वी के बने होते हैं। (21-28) चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा-आषाढ़ पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा-ये चार महोत्सव हैं / उक्त महापूर्णिमाओं के बाद आने वाली प्रतिपदा महाप्रतिपदा कहलाती है। चारों महापूर्णिमाओं और चारों महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। __(29-32) प्रातःकाल, दोपहर, सायंकाल और अर्द्धरात्रि-ये चार सन्ध्याकाल हैं। इन संध्याओं में भी दो घड़ी तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। इन बत्तीस अस्वाध्यायों का विस्तृत विवेचन तो श्री स्थानांगसूत्र, व्यवहारभाष्य तथा हरिभद्रीयावश्यक में किया गया है। अधिक के जिज्ञासु पाठक महानुभाव वहां देख सकते हैं। ___ आगमनन्थों में श्री विपाकसूत्र का भी अपना एक मौलिक स्थान है, अतः श्री विपाकसूत्र के अध्ययन या अध्यापन करते या कराते समय पूर्वोक्त 32 अस्वाध्यायकालों के छोड़ने का ध्यान रखना चाहिए। दूसरे शब्दों में इन अस्वाध्यायकालों में श्री विपाकसूत्र का पठन-पाठन नहीं करना चाहिए। इसी बात की सूचना देने के लिए प्रस्तुत में 32 अस्वाध्यायों का विवरण दिया गया है। 1. ऊपर कहे गए 32 अस्वाध्यायों का भाषानुवाद प्रायः कविरत्न श्री अमरचन्द्र जी महाराज द्वारा अनुवादित श्रमणसूत्र में से साभार उद्धृत किया गया है। स्वाध्याय] श्री विपाक सूत्रम् [31