________________ कड़ाही-ऐसे दो अर्थ करते हैं। प्राकृतशब्दमहार्णव के पृष्ठ 267 पर 'कन्दु' का अर्थ "-जिस में माण्ड (पकाए हुए चावलों में से निकाला हुआ लेसदार पानी) आदि पकाया जाता हो वह बर्तन हाण्डा-" ऐसा लिखा है। टीकाकार महानुभाव के मत में "तवक" और "कन्दु" दोनों में प्रथम पूड़ा पकाने का और दूसरा रोटी पकाने का पात्र है। "तलेंति"-इस क्रियापद से-अग्नि पर तेल आदि से तलते हैं-कड़कड़ाते हुए घी या तेल में डाल कर पकाते हैं- ऐसा अर्थ अभिव्यक्त होता है। "भजेति" का अर्थ है-धाना (भूने हुए यव-जौ या चावल) की तरह भूनते थे-आग पर रख कर या गरम बालू पर डाल कर पकाते थे। "सोल्लिति"-पद के दो अर्थ होते हैं, जैसे कि-१- चावल के समान पकाते थे, तात्पर्य यह है कि जिस तरह चावल पकाए जाते हैं, उसी तरह निर्णय के नौकर अंडों को पकाया करते थे। २-खण्ड-खण्ड किया करते थे। परन्तु कोषकार "सोल्लिति" इस क्रियापद का अर्थ-शूल (बड़ा लंबा और लोहे का नुकीला काण्टा) पर पकाते थे-ऐसा करते हैं। अब सूत्रकार निर्णय अंडवाणिज की अग्रिम जीवनी का वर्णन करते हुए कहते हैं। मूल-से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने। तते णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूते, धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ 4 जा णं बहूहिं मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरियणमहिलाहिं अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा बहाया जाव पायच्छित्ता सव्वालंकार-विभूसिता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च 5 आसादेमाणा 4 विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागयाओ पुरिसनेवस्थिया सनद्ध जाव पहरणा भरिएहिं फलएहिं, णिक्किट्ठाहिं असीहिं अंसागतेहिंतोणेहिं, सजीवेहिंधणूहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लासियाहिं दामाहिं लम्बियाहिं अवसारियाहिं उरूघंटाहिं छिप्पतूरेणं वजमाणेणं महया उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणीओ सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वओ समंता ओलोएमाणीओ 2 आहिंडेमाणीओ 2 दोहलं विणेति।तं जइ णं अहं पि जाव विणिज्जामि, त्ति कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि जाव झियाति। छाया-स ततोऽनन्तरमुवृत्य इहैव शालाटव्यां चोरपल्ल्यां विजयस्य 364 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [.प्रथम श्रुतस्कंध