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________________ तथा और। बहूणं-बहुत से। जलयर-जलचर। थलयर-स्थलचर। खहयरमाईणं-खेचर आदि जन्तुओं के। अंडए-अंडों को। तवएसु य-तवों पर। कवल्लीसु य-कवल्ली-गुड़ आदि पकाने का पात्र विशेष (कड़ाहा) में। कंदूसु य-कन्दु-एक प्रकार का बर्तन-जिस में मांड आदि पकाया जाता हो अर्थात् हांडे में, अथवा चने आदि भूनने की कड़ाही में अथवा लोहे के पात्र विशेष में। भजणएसु य-भर्जनक-भूनने का पात्र विशेष / इंगालेसु य-अंगारों पर। तलेंति-तलते थे। भज्जेंति-भूनते थे। सोल्लिंति-शूल से पकाते थे। रायमग्गे-राजमार्ग के। अंतरावणंसि-अन्तर-मध्यवर्ती, आपण, दुकान पर, अथवा राजमार्ग की दुकानों के भीतर। अंडयपणिएण-अण्डों के व्यापार से। वित्तिं-कप्पेमाणा-आजीविका करते हुए। विहरंतिसमय व्यतीत करते थे। अप्पणा-वि य णं-और स्वयं भी। से-वह। निण्णए-निर्णय नामक। अंडवाणियए-अण्डों का व्यापारी। तेहिं-उन। बहूहि-अनेक। काइअंडएहि य-काकी के अण्डों। जाव-यावत् / कुक्कुडिअंडएहि य-मुर्गी के अण्डों, जो कि। सोल्लेहि-शूल से पकाए हुए। तलिएहितले हुए। भजिएहि-भूने हुए -के साथ। सुरं च ५-पंचविध सुरा आदि मद्य विशेषों का। आसाएमाणे ४-आस्वादनादि करता हुआ। विहरति-समय बिता रहा था। तते णं-तदनन्तर / से-वह। निण्णए-निर्णय नामक। अंडवाणियए-अण्डवाणिज। एयकम्मे ४-इन्हीं पाप कर्मों में तत्पर हुआ, इन्हीं पापपूर्ण कर्मों में प्रधान, इन्हीं कर्मों के विज्ञान वाला और यही पाप कर्म उस का आचरण बना हुआ था ऐसा वह निर्णय। सुबहुं-अत्यधिक। पावं-पापरूप। कम्म-कर्म को। समन्जिणित्ता-उपार्जित करके। एगं वाससहस्संएक हजार वर्ष की। परमाउं-परम आयु को। पालइत्ता-भोग कर। कालमासे-कालमास में-मृत्यु का समय आ जाने पर / कालं किच्चा-काल कर के। तच्चाए-तीसरी।पुढवीए-पृथिवी-नरक में। उक्कोसउत्कृष्ट / सत्त-सात / सागरोवम-सागरोपम की। द्वितीएसु-स्थिति वाले।णेरइएसु-नारकों में। णेरइयत्ताएनारकीय रूप से। उववन्ने-उत्पन्न हुआ। ___ मूलार्थ-इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में पुरिमताल नामक एक विशाल भवनादि से युक्त, स्वचक्र और परचक्र के भय से विमुक्त एवं समृद्धिशाली नगर था। उस पुरिमताल नगर में उदित नाम का राजा राज्य किया करता था, जो कि महा हिमवान्-हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। उस पुरिमताल नगर में निर्णय नाम का एक अंडवाणिजअंडों का व्यापारी निवास किया करता था, जो कि आढ्य-धनी, अपरिभूत-पराभव को प्राप्त न होने वाला, अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द-परम असन्तोषी था। निर्णय नामक अंडवाणिज के अनेक दत्तभृतिभक्तवेतन अर्थात् रुपया, पैसा और भोजन के रूप में वेतन ग्रहण करने वाले अनेकों पुरुष प्रतिदिन कुद्दाल तथा बांस की पिटारियों को लेकर पुरिमताल नगर के चारों ओर अनेक काकी (कौए की मादा) 360 ] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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