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________________ अपहरण (चुराना) गोग्रहण कहलाता है। तात्पर्य यह है कि-विजयसेन चोरसेनापति लोगों के पशुओं को चुरा कर ले जाया करता था। (4) बन्दिग्रहण-बन्दि शब्द से उस व्यक्ति का ग्रहण होता है-जिसे कैद (पहरे में बन्द स्थान में रखना, कारावास) की सजा दी गई है, कैदी। बन्दियों का ग्रहण-अपहरण बन्दिग्रहण कहलाता है। तात्पर्य यह है कि विजयसेन चोरसेनापति राजा के अपराधियों को भी चुरा कर ले जाता था। (5) पान्थकुट्ट-पान्थ शब्द से पथिक का बोध होता है। कुट्ट-उन को ताड़ित करना कहलाता है। तात्पर्य यह है कि विजयसेन चोरसेनापति मार्ग में आने जाने वाले व्यक्तियों को धनादि छीनने के लिए पीटा करता था। (6) खत्तखनन-खत्त यह एक देश्य-देशविशेष में बोला जाने वाला पद है। इस का अर्थ है-सेन्ध। सेन्ध का खनन-खोदना खत्तखनन कहलाता है। तात्पर्य यह है कि विजयसेन चोरसेनापति लोगों के मकानों में पाड़ लगा कर चोरी किया करता था। ग्रामघात, नगरघात, इत्यादि पूर्वोक्त क्रियाओं के द्वारा चोरसेनापति लोगों को दुःख दिया करता था। दुःख देने के प्रकार ही सूत्रकार ने "ओवीलेमाणे" इत्यादि पदों द्वारा अभिव्यक्त किए हैं। उन की व्याख्या निम्नोक्त है : (1) उत्पीडयन्-उत्कृष्ट पीड़ा का नाम उत्पीड़ा है। अर्थात् विजयसेन चोरसेनापति लोगों को बहुत दुःख देता हुआ। (2) विधर्मयन्-धर्म से रहित करता हुआ। तात्पर्य यह है कि दानादि धर्म में प्रवृत्ति धनादि के सद्भाव में ही हो सकती है। परन्तु विजयसेन चोरसेनापति लोगों की चल और अचल दोनों प्रकार की ही सम्पत्ति छीन रहा था, उन्हें निर्धन बनाता रहता था। तब धनाभाव होने पर दानादिधर्म का नाश स्वाभाविक ही है। इसी भाव को सूत्रकार ने विधर्मयन् पद से अभिव्यक्त किया है। (3) तर्जयन्-तर्जना का अर्थ है, डांटना, धमकाना, डपटना। तात्पर्य यह है कि विजयसेन चोरसेनापति लोगों को धमकाता हुआ या लोगों को याद रखो, यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो तुम्हारा सर्वस्व छीन लिया जाएगा,-इत्यादि दुर्वचनों से तर्जित करता हुआ। (4) ताडयन्-ताड़ना का अर्थ है कोड़ों से पीटना। तात्पर्य यह है कि विजयसेन चोरसेनापति लोगों को चाबुकों से पीटता हुआ। "नित्थाणे"-इत्यादि पदों का भावार्थ निनोक्त है प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [348 [345
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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