________________ है, वह तो मैंने सुन लिया है। अब आप कृपया यह बताने का अनुग्रह करें कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है। यह तीसरे अध्ययन की प्रस्तावना है, जिस को सूत्रकार ने मूलसूत्र में "तच्चस्स उक्खेवो" इन पदों द्वारा सूचित किया है। इन की वृत्तिकार-सम्मत व्याख्या "-तृतीयाध्ययनस्योत्क्षेपः प्रस्तावना वाच्या, सा चैवम्-जइणं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! के अटे पण्णत्ते?-" इस प्रकार है। अर्थात् उत्क्षेप शब्द प्रस्तावना का परिचायक है। प्रस्तावना का उल्लेख ऊपर कर दिया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में श्री सुधर्मा स्वामी ने श्री जम्बू स्वामी की प्रार्थना पर जो कुछ कथन किया है, उसका वर्णन किया गया है। श्री जम्बू स्वामी की जिज्ञासा-पूर्ति के निमित्त तृतीय अध्ययनगत अर्थ का-प्रतिपाद्य विषय का आरम्भ करते हुए श्री सुधर्मा स्वामी फरमाने लगे हे जम्बू ! जब इस अवसर्पिणी काल का चौथा आरा बीत रहा था, उस समय पुरिमताल नाम का एक सुप्रसिद्ध नगर था। जो कि नगरोचित समस्त गुणों से युक्त और वैभव-पूर्ण था, उसके ईशान कोण में अमोघदर्शी नाम का एक रमणीय उद्यान था। उस उद्यान में अमोघदर्शी नाम से प्रसिद्ध एक यक्ष का स्थान बना हुआ था। पुरिमताल नगर का शासक महाबल नाम का एक राजा था। महाबल नरेश के राज्य की सीमा पर ईशान कोण में एक बड़ी विस्तृत अटवी थी। उस अटवी में शालाटवी नाम की एक चोरपल्ली थी। वह चोरपल्ली पर्वत की एक विषम कन्दरा के प्रान्त भाग-किनारे पर अवस्थित थी। वह वंशजाल के प्राकार (चारदीवारी) से वेष्टित और पहाड़ी खड्डों के विषम-मार्ग की परिखा से घिरी हुई थी। उस के भीतर जल का सुचारु प्रबन्ध था परन्तु उस के बाहर जल का अभाव था। भागने या भाग कर छिपने वालों के लिए उस में अनेक गुप्त दरवाजे थे। उस चोरपल्ली में परिचितों को ही आने या जाने दिया जाता था। अथवा यूं कहें कि उस में सुपरिचित व्यक्ति ही आ जा सकते थे। अधिक क्या कहें वह शालाटवी नाम की चोरपल्ली राजपुरुषों के लिए भी दुरधिगम अथच दुष्प्रवेश थी। . इस चोरपल्ली में विजय नाम का चोरसेनापति रहता था। वह बड़े क्रूर विचारों का था, उसके हाथ सदा खून से रंगे रहते थे। उसके अत्याचारों से पीड़ित सारा प्रान्त उसके नाम से कांप उठता था। वह बड़ा निर्भय, बहादुर और सब का डट कर सामना करने वाला था। उस का प्रहार बड़ा तीव्र और अमोघ-निष्फल न जाने वाला था। शब्द-भेदी बाण के प्रयोग में वह बड़ा निपुण था। तलवार और लाठी के युद्ध में भी वह सब में अग्रेसर था। इसी कारण वह 500 प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / तृतीय अध्याय [335