________________ करने का सुभद्रा का क्या आशय था, इस विचार को करते हुए यही प्रतीत होता है कि उस ने जन्मते बालक को इसलिए त्याग दिया कि उस को पहले बालकों की भांति उस के मर जाने का भय था। रूड़ी पर गिराने से संभव है यह बच जाए, इस धारणा से उस नवजात शिशु को रूड़ी पर फिंकवा दिया गया, परन्तु वह दीर्घायु होने से वहां-रूड़ी पर मरा नहीं। तब उस ने उसे वहां से उठवा लिया। ____ बालक के जीवित रहने पर उस को जो असीम आनन्द उस समय हुआ, उसी के फलस्वरूप उसने पुत्र का जन्मोत्सव मनाने में अधिक से अधिक व्यय किया, और पुत्र का गुणनिष्पन्न नाम उज्झितक रखा। नामकरण की इस परम्परा का उल्लेख अनुयोगद्वार सूत्र में भी मिलता है। वहां लिखा २से किं तं जीवियनामे ? अवकरए उक्कुरुडए उज्झियए कज्जवए सुप्पए से तं जीवियनामे। ___(स्थापना-प्रमाणाधिकार में) अर्थात जिस स्त्री की सन्तान उत्पन्न होते ही मर जाती है वह स्त्री लोकस्थिति की विचित्रता से जातमात्र (जिस की उत्पत्ति अभी-अभी हुई है) जिस किसी भी सन्तान को जीवनरक्षा के निमित्त अवकर-कूड़ा-कचरा आदि में फैंक देती है उस अपत्य का नाम अवकरक होता है। रूड़ी पर फैंके जाने से बालक का नाम उत्कुरुटक, छाज में डाल कर फैंके जाने से बालक का नाम शूर्पक, लोकभाषा में जिसे छज्जमल्ल कहते हैं, इत्यादि नाम स्थापित किए जाते हैं, इसे ही जीवितनाम कहते हैं / अवकरक आदि नामकरण में अधिकरण (आधार) की मुख्यता है और उज्झितक आदि नामकरण में क्रिया की प्रधानता जाननी चाहिए। 1. प्रस्तुत कथा-सन्दर्भ में लिखा है कि माता सुभद्रा ने नवजात बालक को रूडी पर गिरा दिया. गिराने पर वह जीवित रहा, तब उसे वहाँ से उठवा लिया। यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि कर्मराज के न्यायालय में जिसे जीवन नहीं मिला वह केवल रूड़ी पर गिरा देने से जीवन को कैसे उपलब्ध कर सकता है ? जीवन तो आयुष्कर्म की सत्ता पर निर्भर है। रूड़ी पर गिराने के साथ उस का क्या सम्बन्ध ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वास्तव में गिराए गए उस नवजात शिशु को जो जीवन मिला है उस का कारण उस का रूड़ी पर गिराना नहीं प्रत्युत उस का अपना ही आयुष्कर्म है। आयुष्कर्म की सत्ता पर ही जीवन बना रह सकता है। अन्यथा- आयुष्कर्म के अभाव में एक नहीं लाखों उपाय किए जाएं तो भी जीवन बचाया नहीं जा सकता, एवं बढ़ाया नहीं जा सकता। रही रूड़ी पर गिराने की बात, उस के सम्बन्ध में इतना ही कहना है कि प्राचीन समय में बच्चों को रूड़ी आदि पर गिराने की अन्धश्रद्धामूलक प्रथा-रूढ़ि चल रही थी जिस का आयुष्कर्म की वृद्धि के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहता था। 2. -"से किं तंजीवियहेउ"मित्यादि इह यस्य जातमात्रं किञ्चिदपत्यं जीवननिमित्तमवकरादिष्वस्यति, तस्य चावकरकः, उत्कुरुटक इत्यादि यन्नाम क्रियते तज्जीविकाहेतोः, स्थापनानामाख्यायते-"सुप्पए"त्ति यः शूर्पे कृत्वा त्यज्यते तस्य शूर्पक एव नाम स्थाप्यते। शेष प्रतीतमितिः-वृत्तिकारः। 292 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय - [प्रथम श्रुतस्कंध