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________________ चिलात (किरात-देश), २-बर्बर (अनार्य देशविशेष), ३-बकुश (अनार्य देशविशेष), ४यवन (अनार्य देशविशेष), ५-पह्नव (अनार्य देशविशेष), ६-इसिन (अनार्य देशविशेष), ७-चारुकिनक,८-लासक (अनार्य देशविशेष),९-लकुश (अनार्यदेशविशेष), १०-द्रविड़ (भारतीय देश), ११-सिंहल द्वीप (लंका द्वीप), 12- पुलिंद (अनार्य देशविशेष), १३-अरब (अरबदेश), १४-पक्कण (अनार्य देशविशेष), १५-बहली (भारत वर्ष का एक उत्तरीय देश), १६-मुरुण्ड (अनार्य देशविशेष), १७-शबर (अनार्य देशविशेष), १८-पारस (फारसईरान) इन 18 'देशों की भाषा-बोली से कामध्वजा गणिका सुपरिचित थी। इस वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि गणिका जहां काम-शास्त्र वर्णित विशेष रतिगुण आदि में निपुणता लिए हुए थी वहां वह भाषाशास्त्र के वैदूष्य से भी परिपूर्ण थी, और असाधारण एवं सर्वतोमुखी मस्तिष्क की स्वामिनी थी। "-सिंगारागारचारुवेसा-शृङ्गारागारचारुवेषा"-अर्थात् उसका सुन्दर वेष शृंगाररस का घर बना हुआ था। तात्पर्य यह है कि उस की वेष-भूषा इतनी मनोहर थी कि उस से वह शृङ्गार रस की एक जीतीजागती मूर्ति प्रतीत होती थी। "-गीय-रति-गन्धव्व-नट्ट कुसला-गीत-रतिगान्धर्वनाट्यकुशला-"अर्थात् वह गीत, रति, गान्धर्व और नाट्य आदि कलाओं में प्रवीण थी। तात्पर्य यह है कि वह एक ऊंचे दर्जे की कलाकार थी। गीत संगीत का ही दूसरा नाम है। रतिक्रीडाविशेष को कहते हैं। गान्धर्व-नृत्ययुक्त संगीत का नाम है, और केवल नृत्य की नाट्य संज्ञा है [गान्धर्वंनृत्ययुक्तगीतम्, नाट्यं तु नृत्यमेवेति-वृत्तिकारः] - "संगत गत" इस निर्देश से ग्रहण किया जाने वाला समस्त पाठ वृत्तिकार अभयदेव सूरि के उल्लेखानुसार निम्नलिखित है "-संगय-गय-भणिय-विहित-विलास-सललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयारकुसला" इति दृश्यम्, संगतान्युचितानि गीतादीनि यस्याः सा तथा सललिता प्रसन्नतोपेता ये संलापास्तेषु निपुणा या सा तथा, युक्ताः संगता ये उपचारा व्यवहारास्तेषु कुशला या सा तथा, ततः पदत्रयस्य कर्मधारयः" अर्थात् उस के गमन, वचन और विहित-चेष्टाएं, समुचित थीं, वह मन को लुभाने वाले संभाषण में निपुण थी, और व्यवहारज्ञ एवं व्यवहार कुशल थी। "-सुन्दरत्थण." आदि समग्रपाठ का वृति में विवरणपूर्वक इस प्रकार निर्देश किया है "सुन्दर त्थण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्ण-विलास-कलिया" इति 1. स्वतन्त्ररूप से 18 देशों का नाम कहीं देखने में नहीं आया परन्तु राजप्रश्नीय आदि सूत्रों में 18 देशों की दासियों का वर्णन मिलता है, उसी के आधार से ये 18 नाम संकलित किए गए हैं। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [239
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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