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________________ (23) षड्भाषा-कला-इस कला से संस्कृत, शौरसेनी, मागधी, प्राकृत, पैशाची और अपभ्रंश इन छः भाषाओं का ज्ञान उपलब्ध किया जाता है। (24) योगाभ्यास-कला-इस कला से सांसारिक विषयों से मन हटाकर परमात्मभाव की ओर लगाए रखने का ज्ञान कराया जाता है। इस के द्वारा 84 आसनों की साधना की जाती है। इस कला के द्वारा योग के आठों अंगों आदि की शिक्षा दी जाती है। __ (25) रसायन-कला-इस कला से कई बहुमूल्य धातुएं जड़ी बूटियों के संयोग से तैयार की जाती हैं। (२६)अंजन-कला-इस से नेत्रज्योति में वृद्धि करने वाले तरह-तरह के अंजनों को तैयार करने की विधि सिखाई जाती है। (२७)स्वप्नशास्त्र कला-इस कला से स्वप्न कब आते हैं, क्यों आते हैं, इन का क्या स्वरूप है, कितने प्रकार के होते हैं, मध्यरात्रि के पहले और पीछे आने वाले स्वप्नों में से किस का प्रभाव अधिक होता है, स्वप्न बुरा है, या अच्छा है, यह कैसे जाना जा सकता है, इत्यादि अनेकों प्रकार की बातों का बोध होता है। (२८)इन्द्रजाल-कला-इस कला से हाथ की सफाई के अनेकों काम सीखना तथा दिखाना, किसी चीज़ के टुकड़े-टुकड़े करके पीछे उसे उस के पहले के रूप में ला दिखाना, लौकिक दृष्टि में किसी पुरुष को निर्जीव बना करके, सब के देखते-देखते फिर से उसे सजीव बना देना, किसी की दृष्टि को ऐसा बान्ध देना कि उसे जो कहा जाए वही दिखे, किसी चीज़ को टुकड़े-टुकड़े करके मुख द्वारा खा जाना और फिर उसे उस के पूर्वरूप में ही नाक या बगल या कान की ओर से निकाल कर दिखाना, इत्यादि बातों की पूरी-पूरी शिक्षा दी जाती है। . (29) कृषि-कर्म-कला-इस कला से भूमि की प्रकृति कैसी होती है, इस भूमि में कौन सी वस्तु अधिकता से उत्पन्न हो सकती है, अमुक वस्तु या अनाज या वृक्ष, लताएं अमुक समय में लगाए जाने चाहिएं, उन्हें अमुक-अमुक खाद देने से वे खूब फैलते हैं और फूलते हैं, खेती के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के किन-किन औज़ारों की आवश्यकता है, इत्यादि बातों का सांगोपांग ज्ञान कृषक लोगों को कराया जाता है। (30) वस्त्रविधि-कला-इस कला के द्वारा वस्त्र किन-किन पदार्थों से बनाए जाते हैं, उनकी उपज कहां, कब और कैसे उत्तम से उत्तम रूप में की जा सकती है, जिस कपास के तन्तु जितने ही अधिक लम्बे अधिक निकलते हैं, वह कैसा होता है, उत्तम या अधम कोटि के कपास, ऊन, टसर, रेशम, या पश्म की क्या पहचान है, इत्यादि बातों का पूरा-पूरा ज्ञान लोगों को कराया जाता है। 230 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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