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________________ जैसे कि उदीर्णवेदनं नेत्रं, रागोद्रेकसमन्वितम्।घर्षनिस्तोदशूलाश्रु युक्तमामान्वितं विदुः॥ अर्थात्-जिस रोग में नेत्रों में उत्कट वेदना-पीड़ा हो, लाली अधिक हो, करकराहट हो-रेत गिरने से होने वाली वेदना के समान वेदना हो, सुई चुभाने सरीखी पीड़ा हो, तथा शूल हो और पानी बहे, ये सब लक्षण आमयुक्त नेत्ररोग के जानने चाहिएं। (10) मूर्ध-शूल-मस्तक शूल की गणना शिरोरोग में है। यह-शिरोरोग ग्यारह प्रकार का होता है, जैसे किशिरोरोगास्तु जायन्ते वातपित्तकफैस्त्रिभिः। सन्निपातेन रक्तेन क्षयेण कृमिभिस्तथा॥१॥ सूर्यावर्तानन्त-वात-शंखकोऽर्द्धावभेदकैः।एकादशविधस्यास्य लक्षणं संप्रवक्ष्यते॥२॥ . (बंगसेने) अर्थात्-(१) वात (2) पित्त (3) कफ (4) सन्निपात (5) रक्त (6) क्षय और (7) कृमि, इन कारणों से उत्पन्न होने वाले सात तथा (8) सूर्यावर्त (9) अनन्त-वात। (10) अर्द्धावभेदक और (11) शंखक, इन चार के साथ शिरोरोग ग्यारह प्रकार का है, इन सब के पृथक्-पृथक् लक्षण निदान ग्रन्थों से जान लेने चाहिएं। यहां विस्तार भय से उनका उल्लेख नहीं किया गया। (११)अरोचक-भोजनादि में अरुचि-रुचिविशेष का न होना अरोचक का प्रधान लक्षण है। बंगसेन तथा माधवनिदान प्रभृति वैद्यक ग्रन्थों में लिखा है कि-वातादि दोष, भय, क्रोध और अति-लोभ के कारण तथा मन को दूषित करने वाले आहार, रूप और गन्ध के सेवन करने से पांच प्रकार का अरोचक रोग उत्पन्न होता है, जैसे किवातादिभिः शोकभयातिलोभक्रोधैर्मनोनाशन-रूपगंधैः अरोचकाः स्यु.......॥१॥ [बंगसेने] (12) अक्षिवेदना-यह कोई स्वतन्त्र रोग नहीं है। किन्तु वात-प्रधान नेत्र रोग में अर्थात्-वाताभिष्यन्द में यह समाविष्ट किया जा सकता है, जैसे कि- . निस्तोदनस्तंभन-रोमहर्ष-संघर्षपारुष्य-शिरोभितापाः। विशुष्कभावः शिशिरश्रुता च वाताभिपन्ने नयने भवन्ति॥५॥ [माधवनिदाने नेत्ररोगाधिकारः] अर्थात्-वाताभिष्यन्द-वातप्रधान नेत्ररोग में सूई चुभाने सरीखी पीड़ा या तोड़नेनोचने सरीखी पीड़ा होती है, इस के अतिरिक्त नेत्रों में स्तंभन, जड़ता, रोमांच, करकराहटरेता पड़ने सरीखी रड़क, और रुक्षता होती है तथा मस्तकपीड़ा और नेत्रों से शीतल आंसु गिरते 170 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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