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________________ छिन्नश्वास, तमकश्वास, और क्षुद्रश्वास ये पांच भेद कहे हैं। जब वायु कफ के साथ मिलकर प्राण जल और अन्न के बहने वाले स्रोतों को रोक देता है तब अपने आप कफ से रुका हुआ वायु चारों और स्थित होकर श्वास को उत्पन्न करता है। (2) कास-कासरोग भी वात, पित्त, कफ, क्षत और क्षय भेद से पांच प्रकार का है। इस का निदान और लक्षण इस प्रकार वर्णन किया हैधूमोपघाताद्रजसस्तथैव, व्यायामरूक्षान्ननिषेवणाच्च। विमार्गगत्वाच्च हि भोजनस्य, वेगावरोधात् क्षवथोस्तथैव॥१॥ प्राणो ह्यदानानुगतः प्रदुष्टः संभिन्नकांस्यस्वनतुल्यघोषः। निरेति वक्रात् सहसा सदोषो मनीषिभिः कास' इति प्रदिष्टः॥२॥ . (माधवनिदाने कासाधिकारः) अर्थात्-नाक तथा मुख में रज और धूम के जाने से, अधिक व्यायाम करने सें, नित्य प्रति रुक्षान्न के सेवन से, कुपथ्यभोजन से, मलमूत्र के अवरोध तथा आती हुई छींक को रोकने से, प्राणवायु अत्यन्त दुष्ट होकर और दुष्ट उदान वायु से मिलकर कंफ पित्त युक्त हो सहसा मुख से बाहर निकले, उस का शब्द फूटे कांस्य पात्र के समान हो, मनीषी-वैद्यलोग उसे कासअर्थात् खांसी का रोग कहते हैं। (3) ज्वर- स्वेदावरोधः सन्तापः, सर्वांगग्रहणं तथा। युगपद् यत्र रोगे तु, स ज्वरो व्यपदिश्यते // 143 // / [बंगसेने ज्वराधिकारः] अर्थात्-पसीना न आना, शरीर में सन्ताप का होना, और सम्पूर्ण अंगों में पीड़ा का होना, ये सब लक्षण जिस रोग में एक साथ हों उस को ज्वर कहते हैं। ज्वर के वातज्वर, पित्तज्वर, कफज्वर द्विदोषज्वर इत्यादि अनेकों भेद लिखे हैं। जिन्हें वैद्यक ग्रन्थों से जाना जा सकता है। (4) दाह- एक प्रकार का रोग है, जिस से शरीर में जलन प्रतीत होती है। 1. यदा स्रोतांसि संरुध्य मारुतः कफपूर्वकः। विष्वग् व्रजति संरुद्धस्तदा श्वासान् करोति सः॥ 17 // [माधवनिदाने-श्वासाधिकार] 2. (क) कसति शिरः कंठादूर्ध्वं गच्छति वायुरिति कासः। अर्थात् जो वायु कंठ से ऊपर सिर की ओर जाए उस को कास कहते हैं। (ख) अभिधान राजेन्द्र कोष में कास शब्द का "-केन जलेन कफात्मकेन अश्यते व्याप्यते इति कासः" ऐसा अर्थ लिखा है। इस का भाव है-कफ का बढ़ना, अर्थात् खांसी का रोग। . 166) श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [ प्रथम श्रुतस्कंध
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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