SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदों का बोधक है। इन की व्याख्या पीछे कर दी गई है। अब भगवान् के द्वारा दिए गए उक्त प्रश्नों के उत्तर को सूत्रकार के शब्दों में सुनिए मूल-गोयमा ! इसमणे भगवं महावीरे भगवं गोतमं एवं वयासी-एवं खलु गोतमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेवजंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे णाम नगरे होत्था, रिद्धस्थिमिय० २वण्णओ।तत्थ णं सयदुवारेणगरे धणवती णामं राया होत्था। तस्स णं सयदुवारस्स णगरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरस्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे णाम खेडे होत्था रिद्ध तस्स णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि होत्था। तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई नाम रट्ठकूडे होत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे।से णं एक्काई रट्ठकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हंगामसयाणं आहेवच्चंजावपालेमाणे विहरति। तते णं से एक्काई विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचगामसयाई बहुहिं करेहि य भरेहि य विद्धीहि य उक्कोडाहि य पराभवेहि य दिज्जेहि य भिज्जेहि य कुन्तेहि य लंछपोसेहि य आलीवणेहि य पंथकोट्टेहि य ओवीलेमाणे२ विहम्मेमाणे 2 तज्जेमाणे 2 तालेमाणे 2 निद्धणे करेमाणे 2 विहरति। छाया-गौतम ! "इति श्रमणो भगवान् महावीरो भगवन्तं गौतममेवमवदत् 1. मूलसूत्र के-रिद्धस्थिमिय० पद से सूत्रकार को “रिद्धस्थिमियसमिद्धे" यह पाठ अभिमत है। इस में (1) रिद्ध, (2) स्तिमित (3) समृद्ध ये तीन पद हैं / रिद्ध शब्द का अर्थ सम्पत्-सम्पन्न होता है, स्तिमित शब्द स्वचक्र और परचक्र के भय से विमुक्त का बोधक है, और समृद्ध शब्द से उत्तरोत्तर बढ़ते हुए धन एवं धान्यादि से परिपूर्ण का ग्रहण होता है। ये सब नगर के विशेषण हैं। 2. वण्णओ-वर्णकः, पद से सूत्रकार को औपपातिक सूत्र के नगर-सम्बन्धी वर्णन-प्रकरण का ग्रहण करना अभिमत है। 3. करैः क्षेत्राद्याश्रित्य राजदेयद्रव्यैः, भरैः तेषां प्राचुर्यैः, वृद्धिभिः-कुटुम्बिनां वितीर्णस्य धान्यस्य द्विगुणादेर्ग्रहणैः, लञ्चाभिः (घूस इति भाषा, पराभवैः तिरस्कारकरणैः, देयैः अनाभवद्दातव्यैः, भेद्यैः-यानि पुरुषमारणाद्यपराधमाश्रित्य ग्रामादिषु दण्डद्रव्याणि निपतन्ति, कौटुम्बिकान् प्रति च भेदेनोद्ग्राह्यन्ते तानि भेद्यानि अतस्तैः, कुन्तकैः ‘एतावद् द्रव्यं त्वया देयम्' इत्येवं नियन्त्रणया नियोगिस्य देशादेर्यत् समर्पणं तैः लञ्छपोषैःलञ्छाश्चौरविशेषाः संभाव्यन्ते, तेषां पोषा: पोषणाणि तैः, आदीपनकैः- व्याकुललोकानां मोषणार्थं ग्रामादिप्रदीपनकैः, पान्थकुट्टै:- पान्थानां शस्त्रापहारेण धनापहरणैः, अवपीलयन् बाधयन्, विधर्मयन् स्वाचारभ्रष्टान् कुर्वन्, तर्जयन्कृतावष्टम्भांस्तर्जयन् 'ज्ञास्यथ रे ! मम इदमिदं च न दत्थ, इत्येवं भेषयन्, ताडयन्-कशचेपटादिभिरिति भावः। 4. वृत्तिकार ने "गोयमा ! इ" इन पदों की व्याख्या "-गौतम ! इत्येवमामन्त्र्य इति गम्यते-" इन प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [157
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy