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________________ (8) कर्मप्रवाद-पूर्व-इसमें आठ कर्मों का निरूपण प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि भेदों द्वारा विस्तृत रूप से किया गया है। (9) प्रत्याख्यान-प्रवाद-पूर्व-इसमें प्रत्याख्यानों का भेद-प्रभेद पूर्वक वर्णन है। (10) विद्यानु-प्रवाद-पूर्व-इस पूर्व में विविध प्रकार की विद्याओं तथा सिद्धियों का वर्णन है। (11) अवन्ध्य-पूर्व-इसमें ज्ञान, तप, संयम आदि शुभ फल वाले तथा प्रमाद आदि अशुभ फल वाले अवन्ध्य अर्थात् निष्फल न जाने वाले कार्यों का वर्णन है। (12) प्राणायुष्प्रवाद-पूर्व-इसमें दश प्राण और आयु आदि का भेद-प्रभेद पूर्वक विस्तृत वर्णन है। (13) क्रिया-विशाल-पूर्व-इसमें कायिकी, आधिकरणिकी आदि तथा संयम में उपकारक क्रियाओं का वर्णन है। - (14) लोक-बिन्दु-सार-पूर्व-संसार में श्रुत ज्ञान में जो शास्त्र बिन्दु की तरह सबसे श्रेष्ठ है, वह लोक बिंदुसार है। __पूर्व का अर्थ है-तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थंकर भगवान जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं उसे पूर्व कहते हैं। . "चउणाणोवगए-चतुर्ज्ञानोपगतः" यह विशेषण, परम-पूज्य आर्य सुधर्मा स्वामी को चतुर्विध ज्ञान के धारक सूचित करता है, अर्थात् उन में मति, श्रुत, अवधि और मनपर्यव ये चारों ज्ञान विद्यमान थे। इससे सूत्रकार को उनमें ज्ञान-सम्पत्ति का वैशिष्ट्य बोधित करना .. व्याख्या- सर्वांगेभ्यः पूर्व-तीर्थकरैरभिहितत्वात् पूर्वाणि तानि यथा-सर्वद्रव्याणां चोत्पादप्रज्ञप्तिहेतुरुत्पादम्।१ / सर्वद्रव्याणां पर्यायाणां सर्व-जीव-विशेषाणां च अग्रं परिमाणं वर्ण्यते यत्र तद् अग्रायणीयम्। 2 / जीवानामजीवानां च सकर्मे-तराणां च वीर्यं प्रवदतीति वीर्य-प्रवादम्। 3 / अस्तीति नास्तेरुपलक्षणं, ततो यल्लोके यथाऽस्ति यथा वा नास्ति अथवा स्याद्-वादाभिप्रायेण तदेवास्ति नास्तीति प्रवदति अस्ति-नास्ति-प्रवादम्। 4 / मतिज्ञानादिपञ्चकं स-भेदं प्रवदतीति ज्ञान-प्रवादम्। 5 / सत्यं संयमः सत्यवचनं वा तत् सभेदं सप्रतिपक्षं च यत् प्रवदति तत् सत्य-प्रवादम्। 6 / नयदर्शनैरात्मानं प्रवदति आत्म-प्रवादम्। 7 / ज्ञानावरणाद्यष्टविधं कर्म प्रकृतिस्थित्यनुभाग-प्रदेशादिभेदैरन्यैश्चोत्तर-भेदैभिन्नं प्रवदति कर्म प्रवादम्। 8 / सर्व प्रत्याख्यान-स्वरूपं प्रवदति प्रत्याख्यान प्रवादम्। तदेकेदशः प्रत्याख्यानम्, भीमवत्। 9 / विद्यातिशयान् प्रवदति विद्याप्रवाद। 10 / कल्याणफल-हेतुत्वात् कल्याणम् अवन्ध्यमिति चोच्यते। 11 / आयुः-प्राणविधानं सर्वं सभेदम् अन्ये च प्राणा वर्णिता यत्र तत् प्राणावायम्।१२। कायिक्यादयः संयमाद्याश्च क्रिया विशाला सभेदा यत्र तत् क्रिया-विशालम् / 13 / इहलोके श्रुतलोके वा बिंदुरिवाक्षरस्य सर्वोत्तमं सर्वाक्षरसन्निपात-परिनिष्ठितत्वेन लोकबिन्दुसारम् / 14 / (अभिधान चिन्तामणि) * प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [103
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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