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________________ विगत दो वर्षों में आचार्य देव श्री आत्माराम जी महाराज द्वारा व्याख्यायित आगमों के दशाधिक संस्करण आचार्य श्री की कलम का संस्पर्श पाकर प्रकाशित हो चुके हैं। आचार्य श्री के कार्य की यह गतिशीलता निश्चित ही चकित करने वाली है। आंगम संपादन और प्रकाशन के इस पुण्यमयी अभियान पर सभी श्रमण-श्रमणियों और श्रद्धानिष्ठ श्रावक-श्राविकाओं का पूर्ण सहयोग हमें प्राप्त हो रहा है जो अत्यन्त शुभ है।आचार्य श्री के आगम प्रकाशन रूप महत्संकल्प से चतुर्विध श्री संघ जुड़ चुका है। जिनशासन और जिनवाणी की प्रभावना का यह अपूर्व क्षण है।हम सब कितने पुण्यशाली हैं कि इस अपूर्व महाभियान में हमें भी एक कड़ी के रूप में जुड़ने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ है। श्रुत का प्रचुर और प्रभूत प्रचार-प्रसार और व्यवहार हो / जन-जन में श्रुताराधना की प्यास पैदा हो।जन-जन आगम-वांगमय का अवगाहन करे।आगमों में गहरे और गहरे पैठ कर अपने जीवन की मंजिल प्राप्त करे।इन्हीं सदाकांक्षाओं के साथ - शिरीष मुनि (श्रमण संघीय मंत्री) दो शब्द] श्री विपाक सूत्रम्
SR No.004496
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages1034
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size21 MB
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