SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पादः ] उदाहरणानां सूचिः - 212 इहरा नीसामन्नेहिं / (= इतरथा निःसामान्यैः।) 217 न उणा इ अच्छीई। (= न पुनः अक्षीमि।) 217 गेण्हइ रे कलमगोवी। .. (= गृहाति रे कमलमोफी। ) तृतीय पादा। 7 पच्छेहिं कया काही। (= वृक्षः कृता छाया।) 16 दिअ-भूमिसु दाण-बलोनिआई। (= द्विज-भूमिसु दानजलाद्रितानि / ) 38 जाइ विसुद्धेण पह। (जातिविशुद्धेन प्रभो ! / ) 38 दोणि पहू जिअलोए। (= द्वौ प्रभो जीव-लोके / ) 65 ताला जायन्ति गुणा, जाला ते सहिबएहिं चेप्पति / रविकिरणाणुगहिसाई, न्ति कमलाई कमलाई // ' ( = तडा जायन्ते पुषाः यक्ष ते सहरयर सान्ते / . रविकिरणानुगृहीतानि भवन्ति कमलानि कमलनि / ) 1. रस्मता // 166 ववृत्ती / मम 3365 प्रवृत्ती मम्म श्लोकल पूर्वा धमेवास्माभिः मुद्रितं किन्तु सम्पूर्णोऽप्पसं अनेक प्राक्तव्याकरणस्य / प्राचीने हस्तलिखितादर्श क्वचितू प्रतौ विद्यते /
SR No.004494
Book TitleDodhak Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherJain Dharmik Tattvagyan Pathshala
Publication Year1982
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy