________________ 92 प्राकृतव्याकरणस्य [चतुर्थः चतुर्थी- अप्पस्स, अप्पाणस्स, अप्पाण, अप्पाणं, अप्पाणाण, अप्पणो, अप्पाय, अप्पाणाणं, अप्पिणं, अप्पाणाय. पंचमी- . अप्पत्तो, अप्पाओ, अप्पत्तो, अप्पाओ, अप्पाउ, अप्पाउ, अप्पाहि, अप्पाहि, अप्पेहि, अप्पाहिन्तो, अप्पाहिन्तो, अप्पा, अप्पेहिन्तो, अप्पासुन्तो, . अप्पाणो, अप्पाणत्तो, अप्पेसुन्तो, अप्पाणत्तो, अप्पाणाओ, अप्पाणाउ, अप्पाणाओ, अप्पाणाउ, अप्पाणाहि, . अप्पाणाहि, अप्पाणेहि, अप्पाणाहिन्तो, अप्पाणाहिन्तो, अप्पाणेहिन्तो अप्पाणा. अप्पांणासुन्तो, अप्पाणे सुन्तो. षष्ठी- अप्पस्स, अप्पाणस्स, अप्पाण, अप्पाणं, अप्पाणाण, अप्पणो. . अप्पाणाणं, अप्पिणं. सप्तमी-- अप्पे, अप्पम्मि, अप्पेसु, अप्पेसु, अप्पाणे, अप्पाणम्मि, अप्पाणेसु, अप्पाणेसु. [अप्पंसि, अप्पाणंसि.] सम्बोधन- हे अप्प, अप्पो, अप्पा, अप्पा, अप्पाणो, अप्पाण, अप्पाणो, अप्पाणा. अप्पाणा. एवम् बम्ह-बम्हाण (ब्रह्मन्), जुव-जुवाण (युवन्), उच्छउच्छाण (उक्षन्), माव-गावाण (मावन्) मुद्ध मुद्धाण (मूर्धन्) इत्यादयः।