________________ 148 श्रीहेमचन्द्राचार्य विरचित स्त्रीक्लीक्योर्नख शुक्तौ, विश्व मधुकमौषधे, माने लक्ष मधौ कल्या, कोडोऽके तिन्दुक फले. // तरल यवाग्वां पुष्पे, पाटलं पटलं चये / वसन्ततिलकं वृत्ते, कपाल भिक्षुभाजने // 123 // अर्धपूर्वपदो नावष्टयणकत्रनटौ क्वचित् / चोराद्यमनोज्ञाद्यक, कथानककशेरुके // 124 // वेशिकवक्रोष्ठिककन्यकुब्जपीठानि नक्तमवहित्थम् / रशन रसनाच्छोदन शुम्ब तुम्ब महोदय कांस्यम् // 125 // मृगव्यचन्ये च वणिज्यवीर्यनासीरंगात्रापरमन्दिराणि / तमिस्त्रशस्त्रे नगर मसूरत्ववक्षीरकादम्बरकाहलानि // 126 // स्थालीकदल्यौ स्थलजालपित्तला गोलायुगल्यौ बडिशं च 'छदि च / अलाबु जम्बूडुरुषः सरः सदो, रोदोऽचिंषी दाम गुणे त्वयटू तयट् // 127 // इति स्त्रीनपुंसकलिङ्गाधिकारः / स्वतस्त्रिलिङ्गः सरकोऽनुतर्षे शलल; शले / करकोऽब्दोपले कोशः, शिम्बा खड्गपिधानयोः // 128 / / जीवः प्राणेषु केदारे, वलजः पवने खलः / बहुलं वृत्तनक्षत्रपुरायाभरणाभिधाः // 129 // भल्लातक आमलको, हरीतकविमीतको / तारकाढकपिटकस्फुलिङ्गा विडातटौ // 130 //