________________ [13] अर्थो ज्ञानसमन्वितो मतिमता, वैभाषिकेणेष्यते / . प्रत्यक्षो नहि बाह्यवस्तुविसरः, सोत्रान्तिकैराश्रितः // योगाचारमतानुगैरभिमता, साकारबुद्धिः परा / मन्यन्ते किल मध्यमाः कृतधियः, स्वस्थां परां संविदम् // बौद्धदर्शननी मुख्य बे विचारणाओ छे. एक क्षणिकवाद अने बीजो विज्ञामवाद. 'यत् सत् तत् क्षणिकम् जे काई सत् छे ते सर्व क्षणिक छ, ए तेश्रोनो मुख्य सिद्धान्त छे. आ क्षणिकवादने सिद्ध करवा माटे तेओ पारावार प्रयत्न करे छे. एकान्ते जो सर्व क्षणिक छे ए मानवामां आवे तो विश्वतन्त्रनी सर्व व्यवस्थानो विनाश थाय, कांई करवा जेवू न रहे. सापेक्षभावे क्षणिक मानवु ए सत्य छे. क्षणिकवादनी जेवी-जे कांई छे ते सर्व विज्ञानस्वरूप छे-विज्ञानज पदार्थाकारे परिणमन पामे छे अने पदार्थनी भ्रान्ति जन्मावे छे. ए पण बौद्धोनी विचित्र-विचारणा छे. आम जो पदार्थमात्रने विज्ञानरूप मानवामां आवे तो सर्व एकज थई जाय अने सर्व एकस्वरूप छे ए कदी जमातुं नथी, भिन्न भिन्न स्वरूप छे ए तो स्पष्ट जणाय छे. ए भ्रम छे एम कहेवु बराबर नथी. भ्रम सनातन सर्वने न होय, भ्रममा फसाएला भ्रम छे एम कहे. ए सत्य केम मनाय ! आ त्रण स्तवकोमा ते ते विचारणाओ उपपादन करीने तेनुं खण्डन कयुं छे. उपाध्याय जी महाराज तो प्रसङ्गे प्रसङ्गे विनोद पण एवो सुन्दर करे छे-जे आपणे जोयाज करीए, सौत्रान्तिकनो उपहास करतां तेओश्रीए का छे जे-सर्व क्षणिक छे ए प्रमाणे सिद्ध करवाना आग्रहमां आसक्त थयेल सौत्रान्तिक 'इत एकनवतौ कल्पे' 'कप्पट्ठाइ पुहई' एवा बुद्धना सूत्रोनो विनाश