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________________ [ 11 ] बाध न आवे एवी केटलीक विचारणाओ पण दर्शावी छे, तेमां ज्ञातृत्वने कर्तृत्व मानवु ए एक छे अने बीजी आत्माने कर्ता मानवो. वास्तविकता पण एज छे-आ रीते जगत्कर्तृत्वने सङ्गत करवामां ते ते विचारणा दर्शावनारानुं गौरव जळ्वाई रहे छे. साङ्लयदर्शनकार कपिल अने पतञ्जलि पक्षपात जन्मावे एवा विशिष्ट महात्माओ छे, तेमनां कथनने सङ्गत करवु ए समुचित छे. श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज पण आ चर्चाने अन्ते उपसंहार मां कहे छे शास्त्रकारा महात्मानः, प्रायो वीतस्पृहा भवे / / सत्त्वार्थसम्प्रवृत्ताश्च, कथं तेऽयुक्तभाषिणः // 2 // 15 // सर्वभावेषु कर्तृत्वं, ज्ञातृत्वं यदि सम्मतम् / मतं नः सन्ति सर्वज्ञा, मुक्ता:कायभृतोऽपि च // ए श्रीहेमचन्द्राचार्य- वचन पण सुन्दर समन्वयप्रेरक छे. ईश्वरवादनी समाप्ति पछो साङ्क्षय जे प्रकृतिजन्य जगत्ने माने छे, ते पञ्चीस तत्त्वोनी मीमांसा करी छे. प्रकृतिथी महान, महत्तत्त्वथी अहङ्कार, अहङ्कारथी पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच कर्मेन्द्रिय, पांच तन्मात्रा अने मन एम सोळ. पांच तन्मात्राथी पांच भूत, अने स्वतन्त्र आत्मा आ पचीस सालथाभिमत तत्त्वो छे. सालय सत्कार्यवादने माने छे. आत्मा कर्ता नथी पण भोक्ता छे इत्यादि विचारो केवा विसङ्गत छे अने ते कई रोते सङ्गत करी शकाय ए दर्शाव्यु छे. .. ..... प्रकृति ए कर्मप्रकृति छ, तेथीज सर्व काई जन्मे छे. निश्चयनयथी श्रात्मा अलिप्त छे, इत्यादि विचार-भूमिकाओ द्वारा साङ्खथने पोता तरफ खेंची लईने श्रीहरिभद्रसूरिजी सुन्दर समन्वय साधे छे.
SR No.004491
Book TitleKalplatavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri
PublisherJain Sahityavardhak Sabha
Publication Year1958
Total Pages322
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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