________________ ( 18 ) भावी आशंकाओं की अभिव्यक्ति की है। श्रीउपाध्यायजी ने शकुनशास्त्र के आधार पर इस प्रसंग को विविध परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है जिसमें उनकी एतदशास्त्रीय प्रज्ञा का परिपाक प्रस्फुट हुआ है। सोलह पद्यों में अपशकुनों का वर्णन करके दूत की कर्तव्यपरायणता का आख्यान किया है और वह जब स्वामिकार्य के लिये आगे बढ़ता है तो मार्ग में वनाली दृष्टिगत होती है। प्रकृति का मनोरम चित्रणजिसे सम्भवत: जैनसाधु होने के नाते पाद-विहार करते हुए कवि ने भयोभूयः आत्मसात किया था—अभिव्यक्त हया है। इसके साथ ही ग्राम-सस्कृति का वर्णन भी अपने ढंग का अनठा है। कषकों के द्वारा खेतों में धान्य-चयन, पशुपालन, जल-सेचन-क्रिया आदि का वर्णन बहुत ही रोचक है और साथ ही उन-उन क्रियाओं का दार्शनिकदृष्टि से साम्यस्थापन भी प्रशंसनीय है। वहां के निवासियों के आवास एवं जिनालयों को शोभा को काव्यमयी छटा में प्रस्तुत करते हुए कविवर श्रीमद्यशोविजयजी महाराज, ने उनमें भी भरत की तष्णा को निन्दनीय बतलाया है। _जब दूत बाहुबली की राजधानी 'तक्षशिला' के निकट पहुचता है तो ग्रामवधूटियाँ उसे पूछती हैं कि तुम कौन हो? और इसका उत्तर 'मैं भरत महाराजा का दूत हूँ' यह सुनकर वे मूल अर्थ को जानकर भी अन्य विषयों की कल्पना करके उनकी विविध प्रकार से निन्दा करती हैं। यहाँ कृषि के उपकरणों का प्रायुधरूप में वर्णन तथा सुनन्दा-नन्दन के अतिरिक्त किसी को भी महाराजा न मानने की बात से दूत बहुत लज्जित होता है। वहाँ से आगे चलकर दूत 'तक्षशिला' पहुंचता है जिसका वर्णन कुछ पद्यों में हुआ है किन्तु पश्चात् काव्य अपूर्ण ही है। कथा-सूत्र की यह गहनता एवं मञ्जलता प्रस्तुत महाकाव्य के भव्य-भवन की वेदी मात्र आज उपलब्ध है, यह खेद का विषय है !