________________ यशोविजय जी के निरीक्षण-परीक्षण के पश्चात् डॉ० रुद्रदेव त्रिपाठी के सम्पादन में ही इसका उन्हीं के विस्तृत उपोद्धात—जिसमें जैन साहित्य-ग्रन्थ और टीकाकारों के परिचय के साथ ही, 'काव्यप्रकाश' की अब तक उपलब्ध 146 टीका और टीकाकारों का परिचय है-के साथ व्यवस्थित प्रकाशन भी हुआ। * इसी परम्परा में पूज्य मुनि श्रीयशोविजयजी महाराज के निर्देशन में हीस्याद्वादरहस्यम् वीतरागस्तोत्र के आठवें प्रकाश की 'बृहद्, मध्यम और जघन्य' नामक तीन वृत्तियों से युक्त, प्रमेय-माला, प्रात्मख्याति–वादमाला-(द्वितीयतृतीय विषयतावाद-न्यायसिद्धान्तमञ्जरी--शब्दखण्ड-टीकादिसंग्रहः' का भी प्रकाशन हो रहा है, जो अब प्रायः पूर्णता पर है / इस दिशा में हमारा अगला चरण यह ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ में क्रमश:१. पार्षभीय चरित-महाकाव्य 2. विजयोल्लासमहाकाव्य तथा 3. सिद्धसहस्रनामकोश: ये तीन ग्रन्थ (जिनमें प्रथम, द्वितीय अपूर्ण और तृतीय पूर्ण) हैं / इनका प्रकाशन किया गया है। . 'स्तोत्रावली' तथा 'काव्यप्रकाश' के समान ही इस ग्रन्थ के सम्पादन, मुद्रण आदि का कार्य पूज्य मुनिराजजी के निर्देशन में डॉ० रुद्रदेव त्रिपाठी' ने ही किया है / साथ ही पूज्य श्री की कार्यव्यस्तता के कारण भूमिका लेखन के लिए भी डॉ० त्रिपाठी जी ने महाराज श्री से अपेक्षित साहित्य प्राप्त करके विस्तारपूर्वक विभिन्न विषयों का विवेचन किया है तथा इस ग्रन्थ को उपयोगी बनाने का प्रयास किया है, तदर्थ समिति उनकी आभारी है। _ 'यशोभारती जैन समिति' द्वारा प्रकाशित यह नौवां ग्रन्थ विद्वजनों को अवश्य ही आनन्दित करेगा इस मङ्गल-कामना के साथ इसके प्रकाशन में शास्त्रदृष्टि अथवा मतिदोष से कोई त्रुटि रह गई हो, तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं और आशा करते हैं कि सुधी पाठक हमें सूचित करने की कृपा करेंगे और स्वयं सुधार कर इसके अध्ययन-अध्यापन द्वारा श्रम को सफल बनायेंगे। मन्त्रीमाघ शुक्ला 5, श्रीयशोभारती जन प्रकाशन समिति, वि० सं० 2034 बम्बई: