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________________ प्रकाशकीय निवेदन परमपूज्य आचार्य श्री 1008 श्रीमद् विजय प्रतापसूरीश्वरजी महाराज ' तथा युगदिवाकर परमपूज्य आचार्य श्री 1008 श्रीमद् विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराज एवं परमपूज्य साहित्य-कलारत्न मुनिवर श्रीयशोविजयजी महाराज की प्रेरणा से आज बीस वर्ष पूर्व सन् 1957 ई० में बम्बई के माटुंगा उपनगर में दानवीर धर्मश्रद्धालु श्रेष्ठिवर्य श्रीयुत माणेकलाल चुन्नीलाल के शुभ करकमलों से 'श्रीयशोविजय-स्मृतिग्रन्थ' के प्रकाशन का भव्य-समारोह सम्पन्न हुआ था। उस समय वम्बई के अनेक सुप्रसिद्ध तथा अग्रणी. समाजसेवी उपस्थित हुए थे। उसी प्रसङ्ग पर सत्रहवीं शती में उत्पन्न, हमारे परमोपकारी, जैनशासन के समर्थ ज्योतिर्धर, सैकड़ों ग्रन्थों के प्रणेता, षड्दर्शनवेत्ता, न्यायविशारद, न्यायाचार्य, महोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थों के प्रकाशन का कार्य सुगम बने, इस दृष्टि से एक छोटा-सा फण्ड इकट्ठा किया गया और उसमें जैन-जनता ने उदारता-पूर्वक सहयोग दिया / तदनन्तर उनके ग्रन्थों को प्रकाशित करने के लिए 'श्री यशोभारती जैन प्रकाशन समिति' नामक एक संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था द्वारा आज तक कुछ ग्रंथों का प्रकाशन किया गया, जिनमें 'ऐन्द्रस्तुतिचतुविशतिका, यशोदोहन और वैराग्यरति' आदि ग्रन्थ महत्त्वपूर्ण हैं। इन ग्रन्थों के प्रकाशन के पश्चात् फण्ड कम होने से चिरस्थायी फण्ड के लिए प्रयास किया गया। जैन श्रीसंघ ने पुनः प्रशंसनीय उत्साह से सहयोग दिया। उसके परिणाम-स्वरूप पूर्ववत् प्रकाशन के कार्य को आगे बढ़ाया गया। उसी का यह परिणाम है कि पू. उपाध्यायजी के अन्य ग्रंथों के प्रकाशन का कार्य सुलभ हो सका। एतदर्थ उपदेशकों, प्रेरकों और ज्ञानप्रेमी दानदाताओं को हम धन्यवाद देते हैं। पूज्य उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज की रचनाएं क्रमशः प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और मिश्रभाषा में हैं। वे संस्कृत भाषा के एक महान्
SR No.004489
Book TitleArshbhiyacharit Vijayollas tatha Siddhasahasra Namkosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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