________________ ( 2 ) किया गया संकल्प-- इस सत्र की बैठक के मेरे प्रवचन के अन्त में मैंने एक संकल्प सभी के समक्ष प्रकट किया था कि, "उपाध्यायजी भगवन्त की अनुपलब्ध कृतियों को उपलब्ध करने के लिए मैं सभी सम्भव प्रयत्न करूगा / तदनन्तर प्राप्त कृतियों की प्रेसकापी करके अथवा करवाकर उनका संशोधन-पूर्वक आधुनिक पद्धति से सम्पादन करके मुद्रित करवाकर प्रकाशित कराऊंगा। ___ इसके बाद का कार्य, मुद्रित किन्तु अनुपलब्ध बने हुए ग्रन्थ, जो बहुत आवश्यक होंगे उनका पुनर्मुद्रण कराने की व्यवस्था करूगा और तदनन्तर भाषान्तर के योग्य जो कृतियाँ होंगी उनका भाषान्तर करके प्रकाशित कराना, इसके पश्चात् उपाध्यायजी के जीवन-कवन पर अध्ययन-पूर्वक एक निबन्ध लिखना आदि होगा।" परमपूज्य आगम-प्रभाकर पू० मुनिप्रवर श्री पुण्यविजयजी महाराज इस सत्र की योजना से अत्यन्त प्रसन्न हुए थे और उसके पश्चात् जब मैं उनसे मिला तब उन्होंने मुझे अगणित अभिनन्दन देते हुए अपनी अपार प्रसन्नता अभिव्यक्त की थी। तदनन्तर हम साथ भी रहे एवं संकल्पानुसार अभिनव कृतियों के लिए प्रयास आरम्भ किये, अन्य मित्रों ने भी प्रयास किये। कुछ कृतियाँ प्राप्त हुई। अहमदाबाद के 'देवशाना पाडा' में स्थित भण्डार का पुनरुद्धार करने में पू० पुण्यविजयजी महाराज के साथ मैं भी था। वहाँ से भी उपाध्यायजी के स्व-हस्ताक्षरों में ही उनके द्वारा रचित कृतियाँ उचित मात्रा में उपलब्ध हुई / इस उपलब्धि में सब से अधिक सहयोग पूज्य पुण्यविजयजी महाराज का था, जो कि मेरे प्रति अनन्य पक्षपात रखते थे। इसके पश्चात् मेरी प्रार्थना पर ही उन्होंने सुन्दर सुवाच्य प्रेसकॉपी करनेवाले धर्मात्मा श्रीनगीनदास केवलचन्द द्वारा कतिपय प्रेसकॉपियाँ भी करवा दीं तथा अपने द्वारा की हुई प्रेसकॉपियाँ भी मुझे दीं। तत्पश्चात् उनके संशोधन, सम्पादन एवं मुद्रणादि के कार्य उत्साह से आरम्भ किये गये और उसके परिणामस्वरूप आज 'यशोभारती' का यह नौवां पुष्प प्रकाशित होने से किये गये संकल्प के किनारे के पास पहुंच गया हूं। और एक-दो वर्ष में किनारे पर उतर भी जाऊंगा एवं किये गये संकल्प अथवा ली गई मानसिक प्रतिज्ञा की पूर्णाहुति होने पर जीवन