________________ (द) शिल्प-साहित्य १६-शिल्प-स्थापत्य में गहरी प्रीति और सूझ होने के कारण अपनी स्वतन्त्र कल्पना द्वारा शास्त्रीयता को पूर्णरूपेण सुरक्षित रखते हुए, विविध प्रकार के अनेक मूर्तिशिल्प मुनिजी ने तैयार करवाये हैं, इनमें कुछ तो ऐसे हैं कि जो जैन मूर्तिशिल्प के इतिहास में पहली बार ही तैयार हुए हैं। इन शिल्पों में जिन मूर्तियां, गुरुमूर्तियां, यक्षिणी तथा समवसरणरूप सिद्धचक्र आदि हैं / आज भी इस दिशा में कार्य चल रहा है तथा और भी अनूठे प्रकार के शिल्प तैयार होंगे, ऐसी संभावना है। मुनिजी के शिल्पों को आधार मानकर अन्य . मूर्ति-शिल्प गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के जैन मन्दिरों के लिए वहां के जनसंघों ने तैयार करवाए हैं। पूज्य मुनिजी द्वारा विगत 16 वर्षों से प्रारम्भ की गई अनेक अभिनव प्रवृत्तियों, पद्धतियों और प्रणालियों का अनुकरण अनेक स्थानों पर अपनाया गया है जोकि मुनिजी की समाजोपयोगी दृष्टि के प्रति आभारी है। प्रचार के क्षेत्र में जैन भक्ति-साहित्य के प्रचार की दिशा में 'जैन संस्कृति कलाकेन्द्र' संस्था ने पू० मुनि श्री की प्रेरणा से नवकार-मन्त्र तथा चार शरण की प्रार्थना, स्तवन, सज्झाय, पद आदि की छह रेकार्डे तैयार करवाई हैं / अब भगवान महाबीर के भक्तिगीतों से सम्बन्धित एल. पी. रेकार्ड तैयार हो रही है और भगवान महावीर के 35 चित्रों की स्लाइड भी तैयार हो रही है। भगवान महावीर देव की २५००वीं निर्वाण शताब्दी के निमित्त से जैनों के घरों में जैनत्व टिका रहे, एतदर्थ प्रेरणात्मक, गृहोपयोगी, धार्मिक तथा दर्शनीय सामग्री तैयार हो, ऐसी अनेक व्यक्तियों की इच्छा होने से इस दिशा में भी वे प्रयत्नशील हैं। धार्मिक यन्त्र-सामग्री . मुनिजी ने श्रेष्ठ और सुदृढ़ पद्धतिपूर्वक उत्तम प्रकार के संशोधित सिद्धचक्र तथा ऋषिमण्डल-यन्त्रों की त्रिरंगी, एकरंगी मुद्रित प्रतियां लेने वालों की