________________ सिद्धसहस्रनामावली . धार्मिक ग्रन्थों में नाम-स्मरण की महिमा अत्यधिक वर्णित है। 'कलियुग केवल नाम अधारा / सुमिरि-सुमिरि नर उतरहिं पारा। इस उक्ति के अनुसार वर्तमान युग में नाम स्मरण का ही महत्त्व माना जाता है। इष्टदेव के नाम अनन्त होते हैं क्योंकि उसके गुण, कर्म, प्रभावातिशय सभी तो अनन्त ही हैं। तन्त्र-ग्रन्थों में किसी भी इष्टदेव की कृपाप्राप्ति के लिए जो विधान दिये गये हैं उनमें पटल, पद्धति, कवच, हृदय, स्तोत्र, शतक आदि के साथ 'सहस्रनाम' का भी पाठ आवश्यक बताया है। पूज्यश्री उपाध्याय जी ने इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रस्तुत 'सिद्धसहस्रनामावली की रचना की है। इसमें 1008 नामों का सङ्कलन क्रमशः अनुष्टप् छन्दों में किया गया है / आस्तिक जनों में इस प्रकार के सहस्रनामों को पृथक-पृथक रूप में प्रत्येक नाम के साथ आदि में 'ॐ' तथा अन्त में 'नमः' लगाकर पाठ और पूजन-जप का विधान प्रचलित है और आवश्यकता एवं कर्म को ध्यान में रखकर अन्य बीजमन्त्र लगा कर भी पाठ किये जाते हैं जिसका विस्तत परिचय हमने प्रारम्भ में दिया है। यहाँ केवल आदि में 'ॐ' तथा अन्त में 'नमः' लगाकर चतुर्थी विभक्ति के साथ सभी नामों को अलग-अलग मुद्रित कर रहे हैं। इसका पाठ स्त्री, पुरुष, बालक, बालिका सभी कर सकते हैं और प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। विशेष प्रयोग के लिये मुरु महाराज से निर्देश प्राप्त करें। -सम्पादक