________________ ऽङ्कः ] . अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 527 मारीच:--तपःप्रभावात्सर्वमिदं प्रत्यक्षं तत्रभवतः कण्वस्य / . राजा-अतः खलु ममाऽनतिक्रुद्धो मुनिः / मारीचः--तथाऽप्यसौ दुहितुः सपुत्रायाः पत्या परिग्रहप्रियमस्माभिः श्रावयितव्यः / कः कोऽत्र भोः ? / . (प्रविश्य शिष्यः-) शिष्यः--भगवन् ! अयमस्मि। मारीच:-वत्स गालव ! मद्वचनादिदानीमेव वैहायस्या गत्या तत्रभवते कण्वाय प्रियमावेदय-यथा-'पुत्रवती शकुन्तला तच्छापनिवृत्तौ स्मृतिमता दुष्यन्तेन परिगृहीते'ति। . शिष्यः-यथाऽऽज्ञापयन्ति गुरवः / (-इति निष्क्रान्तः ) / मारीचः-( राजानं प्रति-) वत्स ! त्वमपि सापत्यदारः सख्युअभिलाषः / भणितः= कथितः / मम हृदयेऽप्येवमस्ति यत्तातोऽवगच्छतु वृत्तान्तमिमामति भावः / [ कृतिर्नामाङ्गम् ] / नातिक्रुद्धः = नाऽतिकुपितः / अत एव मां __मारीच-(यद्यपि) अपने तप के प्रभाव से यह सब वृत्तान्त पूरा 2 भगवान् कण्व को पहिले से ही मालूम है। राजा-इसी लिए भगवान् कण्व मुनि ने मेरे ऊपर विशेष क्रोध नहीं दिखाया। मारीच-तथापि पुत्रसहिता अपनी पुत्री शकुन्तला का उसके पति के द्वारा पुनः स्वीकार कर लेने का शुभ वृत्तान्त हमें कण्व को सुनाना ही है / बाहर कौन है ? / [शिष्य का प्रवेश]। शिष्यहे भगवन् ! मैं उपस्थित हूँ, क्या आज्ञा है ? / मारीच-हे वत्स गालव ! तुम अभी आकाश मार्ग से जाकर मेरो ओर से कण्व को यह प्रिय वृत्तान्त सुनाओ, कि-'पुत्रवती शकुन्तला को उसके पति दुष्यन्त ने शापनिवृत्ति के बाद प्रसन्नतापूर्वक पुनः ग्रहण कर लिया है।' शिष्य-जैसी गुरुजी की आज्ञा / ( जाता है)। मारोच-(राजा के प्रति) हे वत्स ! तुम भी अपने पुत्र एवं सी को साथ लेकर