________________ 474 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [सप्तमो राजाअयमरेविवरेभ्यश्चातकैर्निष्पतद्भि __ हरिभिरुचिरभासां तेजसा चानुलिप्तैः / गतमुपरि घनानां वारिगर्भोदराणां, . पिशुनयति रथस्ते शीकरक्लिन्ननेमिः // 7 // .. अयमिति। शीकरैः क्लिन्ना नेमयो यस्यासौ = शीकरक्लिन्ननेमिः = वारिकणाचक्रप्रान्तभागः / ते तव / अयं रथः-अराणां विवरेभ्यः-अरविवरेम्यः = चक्रावयवदण्डच्छिद्रेभ्यः / 'अरं शीघ्र च, चक्राने इति विश्वः / विनिष्पतद्भिः = निस्सरद्भिः। च = किञ्च, अचिरभासां = तडितां। तेजसा = प्रकाशेन / अनुलिप्तैः = परीतैः / व्याप्तः। हरिभिः = रथाश्वैश्च / वारिगर्भाणि उदराणि येषान्तेषां-वारिगर्भोदराणां = जलपरिपूर्णानां / घनानां = मेघानाम् / उपरि = ऊर्ध्वं / गतं = रथस्य गमनं / पिशुनयति = सूचयति / ___ चातकानां रथचक्रच्छिद्रमार्गेणेतस्ततो गतागतेन, विद्युदालोकपरीताङ्गै रथवाजिभिः, आर्दैश्चक्रनेमिभागैश्च तवायं रथ एव मेघपदव्या उपरि गमनमस्माकं सूचयतीति भावः / 'पिशुनौ खलसूचकौ' इत्यमरः / [ काव्यलिङ्गानुप्रासौ / 'मालिनी वृत्तम्' ] // 7 // राजा-आपका यह रथ ही, जिसके पहियों की पखुड़ियों के बीच में से चातक निकल 2 कर उड़ रहे हैं, और जिसके घोड़े भी-चमकती हुई बिजलियों की चमक से चमक रहे हैं, और जिसके पहियों की परिधि (पुट्ठी) भी जल से गीली हो रही हैं-जल से भरे हुए मेघों के ऊपर से अपने चलने की सूचना स्वयमेव दे रहा है। ___ अर्थात्-आप के इस रथ के पहियों की परिधि भीगी हुई हैं, रथ के पहियों के बीचमें लगे हुए काष्टों के बीच में से चातक निकल 2 कर उड़ रहे हैं, रथ के घोड़े-भी बिजली की चमक से प्रकाशित हो रहे हैं-इन सब बातों से स्पष्ट ही प्रतीत हो रहा है, कि-आप का यह रथ मेघमण्डल के ऊपर से अब जा 1 'अयमगविवरेभ्यः' --पा०।