________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 399 विषकः---इदो इदो एदु भवं / (-इत्युभौ परिक्रामतः ) / [इत इत एतु भवान् ] / (-इत्युभौ परिक्रामतः ) / ('सानुमती-अनुगच्छति)। विदषकः-एसो मणिसिलावट्टसणाहो माहवीलदामण्डवो विवित्तदाए, उवहाररमणीजदाए, णिसग्गमारूदेण अ साभदेण विअ पडिच्छिदि तुमं / तां पविसिम निसीददु भवं। [एष मणिशिलापट्टसनाथो माधवीलतामण्डपो विविक्ततया, उपहाररमणीयतया, निसगेमारुतेन च निःसंशयं स्वागतेनेव प्रतीच्छति त्वाम् / तत् प्रविश्य निषीदतु भवान् ] / _ (उभौ-प्रविश्योपविष्टौ ) / सोनुमती-लदासंस्सिदा पेक्खिस्सं दाव पिअसहीए पडिकिदिं / आदेशय = दर्शय / [ईदृशं-शकुन्तलाचित्रमिति वाऽर्थः]। परिक्रामतः = गच्छतः। ___ मणिशिलायाः पट्टेन . सनाथः = मणिशिलाफलकशोभितः। विविक्ततया = एकान्ततया / उपहारेण रमणीयस्तस्य भावस्तया = पुष्पाद्यपहाररमणीयतया / निसर्गमारुतेन = सहजेन मन्दमन्दपवनेन च। निस्संशयं = ध्रुवं / स्वागतेनेव = स्वागतशब्दमुच्चरन्निव / प्रतीच्छति = सत्कारमाचरन् त्वां प्रवेशयति / प्रतिगृह्णाति च / निषीदतु = उपविशतु / विदूषक-इधर से आप आइए, इधर से / ( दोनों कुछ चलते हैं)। [सानुमती-इनके पीछे पीछे चलती है। विदूषक-देखिए ! यह माधवीलता का मण्डप है, इसमें वह मणिशिला ( सङ्गमर्मर या मणियों) का पट्ट ( चौकी) भी पड़ा हुआ है। और यह माधवीलता का मण्डप-एकान्त भी है, और फल फूल आदि रमणीय वस्तुओं से मन को हरण करने वाला है, और सुन्दर सुहावनी मन्द मन्द पवन से युक्त है। इन सब बातों से मानों यह आपका स्वागत ही कर रहा है, और आपकी अगवानी कर रहा है / अतः आइए, इसमें प्रवेश कर यहाँ मणिशिला की चौकी पर विराजिए। ... [राजा और विदूषक-बैठते हैं / सानुमती-मैं भी इन लताओं की आड में बैठकर छिपकर अपनी प्रिय१ 'नौ प्रतीच्छति' / 2 'मिश्रकेशी पा० /