________________ narraamanarmom अभिज्ञानशाकुन्तलम् [पञ्चमोइदमुपनतमेवंरूपमक्लिष्टकान्ति, प्रथमपरिगृहीतं स्यान्नवेत्यध्यवस्यन् / ... भ्रमर इव निशान्ते कुन्दमन्तस्तुषारं, न खलु सपदि भोक्त, नापि शक्नोमि मोक्तम् // 20 // [-१इति विचारयन् स्थितः]। इदमिति / अन्तस्तुषारो यस्य तत्-अन्तस्तुषारं = तुषाराऽऽसारजडीभूतम् / कुन्दं = माध्यं पुष्पम् / निशान्ते = प्रभाते / भ्रमर इव = रोलम्ब इव / इदं = पुरोवर्ति / एवम् = इत्थम् / दैवात् / उपनतं = प्राप्तम् / अक्लिष्टा कान्तिर्यस्य तत्-अक्लिष्ट कान्ति = उज्ज्वलं / रूपम् = आकृतिः। प्रथमं परिगृहीतं = गान्धर्वेण विधिना स्वीकृतं, दृष्टं वा / स्यात् = भवेत् / न वा = न परिगृहीतं वा स्यात् / इति = इत्थम् / अध्यवस्यन् = अहं वितर्कयन् सन् / सपदि = सहसा। एकपदे एव / न भोत = न स्वीकत्तम् / न च मक्त = न च खलु त्यक्त / शक्नोमि / 'पूर्वमयेयं कदाचिदुपभुक्ता नवेतिविचारयन्--तुषारजडं कुन्दं भ्रमर इव-परिभोक्तुं, त्यक्तुं वा नाहं शक्नोम'त्याशयः / [ उपमा-सन्देहाऽलङ्कारौ / संशयाख्यं नाट्यलक्षणञ्च / 'मालिनी वृत्तम्' ] // 20 // हित हुई है, या नहीं' ऐसा संदेह करता हुआ मैं, इसे उसी प्रकार न तो जल्दी से छोड़ ही सकता हूँ, न इसका उपभोग ही कर सकता हूँ, (न तो इसे स्वीकार ही कर सकता हूँ ) जैसे माघ के महीने में होनेवाले, ओस से भरे हुए कुन्दपुष्प को-प्रातःकाल में भौंरा न तो छोड़ ही सकता है, और न उसके मकरन्द रस का पान ही कर सकता है। भावार्थ-जैसे ओस के कारण भीगे व ठण्डे रहने से भौंरा न तो प्रातः काल में कुन्द पुष्प का रसास्वाद ही कर सकता है, न तो कुन्द के मधुर रस के लोभ से उसे छोड़कर अन्यत्र जा ही सकता है। वैसे ही धर्म भय के कारण मैं इसका स्वीकार और उपभोग भी नहीं कर सकता हूँ, और न तो ऐसी स्वयं उपस्थित सुन्दरी युवति को छोड़ना ही चाहता हूँ // 20 // [ ऐसा विचार करता हुआ राजा चुपचाप ही बैठा रहता है। 1 क्वचिन्न /