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________________ 294 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- [पञ्चमोभोः ! सत्यं धर्मकार्यमनतिपात्यं देवस्य, तथापि शङ्कितवानस्मीदानीमेव धर्मासनादुत्थिताय देवाय कण्वशिष्याऽऽगमनं निवेदयितुम् / गजवृन्दानि / सञ्चार्य = स्वयूथ्यैः सह चारयित्वा / तानि स्वस्वकार्ये योजयित्वा वा / रविणा प्रतप्तः = सूर्यकिरणसन्तापसन्तप्तः / शीतलं = शीतं / गुहास्थानं = गह्वरप्रदेशं / द्विपेन्द्र इव = गजराज इव / यूथसञ्चारखिन्नो धर्मादिश्रान्तो यथा गजेन्द्रो गिरिगुहादिरूपं विविक्तं स्थानं सेवते तद्वदित्यर्थः / एष देवः = दुष्यन्तोपि / स्वाः प्रजा इव = स्वापत्यानीव / प्रजाः = लोकान् / तन्त्रयित्वा = नियम्य | ताः स्वस्वधर्म यथावदवस्थाप्य / श्रान्तं मनो यस्यासौ-श्रान्तमनाः = परिश्रान्तचित्तः सन् सम्प्रति / विविक्तं = विजनम् / 'विवित्तौ पूतविजनौ' इत्यमरः / सेवते = आश्रयते / [ यमकम् , उपमा चाऽलङ्कारौ / उपजातिवृत्तम् ] ||.3 // देवस्य = राज्ञः / धर्मकार्य = धर्मतः प्राप्त प्रजारक्षणाऽवेक्षणादिरूपम् | कार्य = कर्त्तव्यं कर्म। अनतिपात्यं नोपेक्षणीयं / सवै विहायाऽऽदावनुष्ठेयमिति यत्तत् / सत्यम् = यद्यपि यथार्थमेतत् / 'सत्यं प्रश्नेऽभ्युपगमे' इति मेदिनी / तथापि–इदानीमेव= सद्य एव / धर्मासनात् = राजसिंहासनात् / धर्माधिकरणात् , आस्थानमण्डपात् / ('दर्बार से ) / उत्थिताय = उत्थायाऽऽगताय / अविश्रान्ताय / शङ्कितवानस्मि = 'ऋष्यागमनं निवेदयामि, न वेति शङ्काकुलोऽस्मि / करके, शान्तमन हो, अब इसी प्रकार एकान्त का सेवन कर रहे हैं, जैसे गजयूथों का यथोचित सञ्चालन करके, सूर्य के सन्ताप (घाम ) से सन्तप्त हो, यूथपति गजराज ठण्डी गिरि गुफा के शीतल स्थान का सेवन करता है। अर्थात्-राजदार से आकर अब महाराज एकान्त में आराम कर रहे हैं // 3 // यद्यपि यह बात सत्य है, कि-धर्म के कार्यों में ( ऋषि-मुनियों के सत्कार भादि कार्यों में) महाराज को कभी विलम्ब नहीं करना चाहिए, किन्तु सब काम छोड़कर भी उनका कार्य एवं आदर सत्कार महाराज को तुरन्त करना चाहिए। अतः ऋषियों के आगमन की सूचना भी शीघ्र ही मुझे दे देनी चाहिए / परन्तु अभी 2 धर्मासन (राजसिंहासन, कचहरी, राजदार ) से उठकर आए हुए, थके हुए महाराज से कण्व के शिष्यों के आगमन की तुरन्त सूचना देने में मुझे शङ्का एवं हिचकिचाहट ही हो रही है। क्योंकि इससे तो महाराज के विश्राम में विघ्न ही पड़ेगा।
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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