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________________ 248 अभिज्ञानशाकुन्तलम्- . [चतुर्थो-' प्रियंवदा-सहि ! केण उण आचक्खिदो तादकण्णस्स अ वुत्तन्तो ? / [ सखि ! केन पुनराख्यातस्तातकण्वस्याऽयं वृत्तान्त: ? ] / .. प्रियंवदा-अग्निसरणं पविट्ठस्स किल सरीरं विना छन्दोमईए वाआए / [अग्निशरणं प्रविष्टस्य किल शरीरं विना छन्दोमय्या वाचा] / अनसूया--( सविस्मयं-) कधं विअ ? / [( सविस्मयं-) कथमिव ? ] / प्रियंवदा-सुणाहि / [शृणु] ! दुष्यन्तहस्तगता। त्वं न शोचनीयतां गतेत्याशयः / ऋषिभिः परिरक्षिताम्-ऋषिपरिरक्षितां = मुनिजनरक्षितां / भर्तः = दुष्यन्तस्य / सकाशं = समीपम् / विसर्जयामि = प्रहिणोमि / वर्तमानसामीप्ये लट् / इति = इत्येवं तात कण्वेन शकुन्तलाकृतमभिनन्दितमिति योजना। __ आख्यातः = कथितः / सूचितः। वृत्तान्तः= शकुन्तलापरिणयात्मको वृत्तान्तः / 'अथ केन सूचितवृत्तान्तः कृतस्तातकण्वः' इति पाठान्तरे सूचितो वृत्तान्तो गान्धर्व विवाहरूपो यस्मै इति विग्रहः। अग्निशरणम् = अग्न्यागारं / शरीरं विना = शरीररहितया। छन्दोमय्या =मन्त्रमय्या / वाण्या = आकाशवाण्या / इसलिए मुझे तेरे विषय में कुछ भी चिन्ता नहीं है। और आज ही मैं तुझको ऋषियों की रक्षा में (ऋषियों को साथ में देकर) तेरे पति के घर पर भेजता हूँ।' अनसूया-हे सखि ! शकुन्तला वाली यह बात तात कण्व को किसने कही। प्रियंवदा-तात कण्व जब हवन करने को अग्निशाला में प्रविष्ट हुए तब अशरीरिणी, छन्दोमयी, आकाशवाणी ने ही उनसे यह हाल कह दिया। अनसूया-( बड़े विस्मय के साथ-) उसने क्या कहा ? / प्रियंवदा-अच्छा, सुनो
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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