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________________ ऽङ्कः] अभिनवराजलक्ष्मी-भाषाटीका-विराजितम् 215 ~~~~mmmmmmmmmm ( शकुन्तला-किञ्चिदृष्ट्वा, ब्रीडावनतमुखी तिष्ठति)। राजा-( अङ्गुलीभ्यां मुखमुन्नमय्य, आत्मगत-) - चारुणा स्फुरितेनाऽयमपरिक्षतकोमलः / पिपासतो ममाऽनुज्ञां ददातीव प्रियाऽधरः // 36 // शकुन्तला-परिणाणमन्थरो विअ अजउत्तो / [परिज्ञानमन्थर इव आर्यपुत्रः]। चारुणेति / अपरिक्षतश्चासौ कोमलश्च-अपरिक्षतकोमलः = अनुच्छिष्टो, मृदुतरश्च / प्रियाया अधरः = प्रियाधरोष्ठः। चारुणा = मनोहरेण / स्फुरितेन = स्फुरणेन / पिपासतः= पानाभिलाषिणः सतृष्णस्य मम / अनुज्ञाम् = अनुमति / ददातीव = प्रयच्छतीव / [ उत्प्रेक्षा] // 36 // परिज्ञाने = लोचनपतितरजोविज्ञाने / मन्थरः = उदासीन इव / यद्वा परिज्ञानेन [ शकुन्तला-राजा की ओर थोड़ा सा देखकर लजित हो नीचा मुख कर लेती है। राजा-(दो अङ्गुलियों से उसकी ठुड्डी पकड़कर, उसका मुख ऊँचा करके, मन ही मन-) मनोहर कान्तिवाला, चमकता हुआ ( या फड़कता हुआ) यह प्रिया का अपरिक्षत ( अभी तक किसी से भी अनास्वादित ) अधरोष्ठ-अपने पान करने की इच्छा वाले मुझको, पान करने की मानों स्वयं अनुमति ही देरहा है // 36 // . शकुन्तला-हे आर्यपुत्र ! आप तो इधर उधर टटोल रहे हैं.मालूम होता है, आप को मेरे नेत्र का पता ही नहीं लग रहा है!। (अथवा आप कुछ विचार निमन से मालूम होते हैं, क्या बात है ?) / . 214 पृष्ठे टिप्पण्याम्-अपरिक्षतेति पाठान्तरं / तस्यार्थः-हे सुन्दरि ! = हेमानिनि ! अपरिक्षतं च तत्कोमलं च, तस्य-अपरिक्षतकोमलस्य = भ्रमरादिनाऽक्षतस्य / मृदुनः / नवस्य = अभिनवस्य / कुसुमस्य = प्रसूनस्य / षट्पदेनेव = भ्रमरेणेव / पातुमिच्छता-पिपासता = सतृष्णेन। मया = त्वत्प्रणियना / ते= तव / अस्य = कामनिधानभूतस्य / अधरस्य = अधरोष्ठस्य / सदयं = मन्दं मन्दं / 'यावदित्यवधि द्योतयति / कान्ये वा। यदि-रसः-गृह्यते = आस्वाद्यते। यदि मामिममधरोष्ठं दातुं प्रतिजानासि, तदा त्वां मुञ्चामीत्याशयः। [श्लेषवाच्यापमा / अनुप्रासः / औपच्छन्दसिकं वृत्तम्' ] /
SR No.004487
Book TitleAbhigyan Shakuntalam Nam Natakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahakavi Kalidas, Guruprasad Shastri
PublisherBhargav Pustakalay
Publication Year
Total Pages640
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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