________________ 3. प्राकृत कौमुदी (व्याकरण) 4. आईत व्याकरण (संस्कृत-लघु सिद्धान्त कौमुदीके समकक्ष ग्रंथ ) 5. आर्हत व्याकरण ( संस्कृत-सिद्धान्त कौमुदी के समकक्ष ग्रंथ ) 6. श्री लाल नाममाला कोष / 7. नानार्थोदय सागर कोष / 8. शिव कोष ( अमर कोश की तरह का ग्रंथ ) 9. गणधरवाद / 10- गृहि धर्म कल्पतरु। 11. जैनागम तचदीपिका। 12. तत्त्वप्रदीपिका। 13. मोक्षपद (धम्मपद की तरह का ग्रंथ / ) 14. लोकशाह महाकाव्य / (जो प्रसिद्ध हो रहा है) 55. शांति सिन्धु महाकाव्य / 16. श्री लक्ष्मीधर चरित्र / .: संस्कृत और प्राकृत के व्याकरण के आप बड़े अधिकारी विद्वान् थे। उपरोक्त व्याकरण ग्रंथों के अलावा आपश्री ने ऊँची धार्मिक परीक्षोपयोगी खास छात्रों के लिए भी कुछ व्याकरण ग्रंथों की रचना की है। ऊपर 13 से 25 क्रमांक पर उल्लिखित रचनाएँ आपश्री के काव्य ग्रंथ है। इन के अलावा आपश्री ने सैंकडों स्तुति-स्तोत्रस्तेवनादि की रचना की है, जो समय समय पर पुस्तिकाओं के रूप में प्रकाशित हुई है। ऐसी पुस्तिकाओं की संख्या 18 है। इतने विवेचन के बाद यह सूर्य प्रकाशसा स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत 'श्री लोकाशाह चरित महाकाव्य ' कितने बड़े अधिकारी विद्वान् एवं कवि श्रेष्ठद्वारा रचा गया हैं / इस की उत्तमता, श्रेष्ठता एवं सुंदरता असंदिग्ध है। - चौदह सर्गों में विभाजित 1600 श्लोक प्रमाण कलेवरवाले इस काव्य में श्वेताम्बर स्थानकवासी समाज के महान क्रांतिकारी पथप्रदर्शक प. पू. लोकाशाह का चरित्र वर्णित है। आपश्री 16 वीं शती विक्रमी में हुए / इस समय जैन समाज तथा जैन यति एवं मुनिवर्ग शिथिलाचारी हो गया था। शास्त्रोक्त मार्ग को छोड़कर मिथ्या मार्ग पर चलने लगा था। बाह्याडंबरों को अत्यंत महत्त्व आ गया था। सचित्त अचित्त का विवेक खूटी पर टांग दिया गया था / उत्सवबाजी इतनी बढ़ गयी थी कि ढोल के ढमाकों में महावीर