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________________ लोकाशाहचरिते विभान्ति यस्यां नयनाभिरामा समुन्नतास्ते शरदभ्रशुभ्राः। . ध्वजां शुकैरातपपत्र तुल्यैः पतंगतापापहते प्रयुक्तैः // 19 // अर्थ-शरदकालीन मेघ के जैसे शुभ्र वे नयनाभिराम उन्नत राजमहल आतप पत्र के जैसी अपनी ध्वजाओं से ऐसे मालूम पडते हैं कि मानों इन्हों ने सूर्य की गर्मी से बचने के लिये छाते ही तान रखें है // 19 // શર ઋતુના મેઘના જેવા ધવલ અને નેત્રને આનંદ દાયક ઊંચા રાજમહેલ, છત્રના જેવી પિતાની ધજાથી એવા જણાય છે કે જાણે આણે સૂર્યની ગરમીથી બચવા માટે છત્ર જ તાણી રાખ્યા છે. 19 सौधामयकोपललालितेलाः प्रोत्तुङ्गश्रृंगैः परितः परीताः। विधूद्गमे मुक्तपयः प्रवाहा हिमालयस्येव विभागमालाः // 20 // अर्थ-वे राजमहल चन्द्रकान्त मणियों से जिनकी भूमि जडित है ऐसे हैं चारों ओर उनके ऊपर बडी 2 शिखरे हैं जब रात्रि में-चन्द्रमा का उदय होता है तब उनसे जल का प्रवाह निकलता है. उससे ऐसा ज्ञात होता है कि मानों ये हिमालय के ही खण्ड हैं // 20 // એ રાજમહેલ ચંદ્રકાંત મણીઓથી જેની ભૂમિ જડેલ હોય તે છે. તેના ઉપર ચારે તરફ મોટા શિખરે છે. રાત્રે જ્યારે ચંદ્રમાને ઉદય થાય છે, ત્યારે તેમાંથી પાણીને પ્રવાહ નીકળે છે. તેનાથી એવું જણાય છે કે- જાણે આ હિમાલયને જ એક ભાગ છે. રા लताप्रतानैः प्रतत् प्रसूनै लोद्गमैर्यन्त्रचयैर्विचित्रैः / पतन्त्रिपातोत्थचलत्तरङ्गैःकुल्या कुलैहँसरथाङ्गयूथैः // 21 // विशोभिताक्रीडचयैः सनाथाः पादारविन्दाञ्चितदारवृन्दाः। स्वर्गप्रदेशा इव ते मनोज्ञा लसन्ति सर्वर्तुसुखाः सचित्रा // 22 // अर्थ-उन राजमहलों में छोटे 2 बगीचे हैं जो क्रीडा के स्थान बने रहते है इनमें लताएं है जो पुष्पों से लदी रहती हैं विचित्र प्रकार के जलयंत्र हैं जिन में पानी निकलता रहता है छोटी छोटी बनावटी नदियां हैं जिन में पक्षियों वे उतरने पर चश्चल तरङ्गे ऊठती रहती है हंस और चकवाचकवी वहां बैठे रहते। वे राजमहल कमल जैसे चरणोंवाली ललनाओं से भरे रहते हैं समस्त ऋतुझं की सामग्रीजन्य सुखका यहां सद्भाव है. और उनके प्रकार के चित्रों से युक्त हैं अतः ये सनोज्ञस्वर्ग के प्रदेश जैसे सुहावने लगते हैं // 21-22 //
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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