________________ 268 लोकाशाहचरिते - अर्थ-यह यदा कदा सखियोंके भी साथ बैठती और उनसे मनोविनोद निमित्त मात्राच्युत, गूढचतुर्थक एवं निरोष्ठ्य छन्द पूछती. // 10 // કઈ કઈ સમયે સખિયેની સાથે પણ બેસતી અને તેઓને મને વિનદ માટે માત્રા ચુત, ગૂઢચતુર્થક અને નિરેષ્ટ છેદ વિષે પૂછતી હતી. ૧ળા विन्दुच्युतं व्यञ्जनलुप्तकं च स्पष्टान्धकं वाक्षरलुप्तकं च / प्रहेलिकैकाक्षरलुप्तपादं किमस्ति तच्छावय भो ! वयस्ये ! // 11 // अर्थ-हे वयस्ये ! बिन्दुच्युत, व्यञ्जनच्युत, स्पष्टान्धक, अक्षरलुप्त, प्रहेलिक एवं एकाक्षरच्युत छन्द कैसे होते हैं. सुनाओ. // 11 // હે સખિ! બિન્દુયુત, વ્યંજનમ્યુત, પછાંધક, અક્ષર લુપ્ત પ્રહેલિકા ! અને આ એકાક્ષરગ્રુત છન્દ કેવા હોય છે ? તે કહો. 11 पृष्टा वयस्याभिरसौ कदाचिद् ब्रूहि त्वमप्यत्र च पञ्जरस्थः / कः कोऽस्ति वा कर्कश निस्वनो वा कोऽस्ति प्रतिष्ठा खलु जन्मिनां वा // 12 // अर्थ-कभी 2 सखियां भी उससे ऐसा पूछती कि तुम भी तो बताओ. पिंजडे के भीतर कौन रहता है ? कठोर शब्द करनेवाला कौन है ? तथा जीवों का आधार क्या है ? उत्तर में वह कहती // 12 // કઈ કઈ સમયે સખિયે પણ તેને એવું પૂછતી કે તમે કહો કે પાંજરાની અંદ કોણ રહે છે ? કઠોર શબ્દ કોણ કરે છે ? તથા પ્રાણિયેને આધારે શું છે ?રા शुकश्च काकः खलु लोक एषः कलापिनः सन्ति च किं च केऽत्र ? / को मञ्जुलालापपर किलास्ति ब्रूझुत्तरं साथ जगौः तदत्र // 13 // अर्थ-शुक-तोता कौवा और यह लौक, पिंजडे में तोता रहता है कठोर शब्द बोलने वाला कौवा होता है और जीवोंका आधार यह लोक है. इस प्रकार प्रश्न वाचक "क" के पहिले एक एक शब्द जोडकर इन प्रश्नोंका उत्तर हो जाता है. पुनश्च सखियोंने गंगादेवी से पूछा-यहां मीठे बोलने वाले कौन है। तथा मञ्जुल आलाप करनेवाला कौन हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर दीजिये. तब गंगादेवीने कहा-इन प्रश्नोंका उत्तर इसी श्लोक में है-अर्थात् मीठे बोलने वाले "कलापिनः" मयूर हैं और मञ्जुल आलाप करनेवाला जीव. "कोकिला" कोयल है. // 13 //