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________________ लोकाशाहबरिते पितुर्निदेशं ह्यधिगम्य सोऽयं, पत्रं समादाय मुदप्रकर्षात् / यत्नान्नथाऽनाय पुरस्य पार्श्वे, समासदवृक्षतले समस्थात् // 134 // अर्थ-पिताका आदेश प्राप्तकर और सेठ के पत्रको लेकर बडे हर्ष से चलता हुआ यह बहुत ही जल्दी नगर के पास आ गया और एक वृक्ष के नीचे बैठ गया. // 234 // | પિતાની અનુમતિ મેળવીને શેઠને પત્ર લઈ હર્ષ પૂર્વક ચાલીને તે ઘણો જ જહિદ ઉજજોની પાસે આવી પહોંચ્યા, તથા વિશ્રામ માટે એક ઝાડની નીચે તે બેઠા. 134 अवश्रमश्रान्तिवशेन सोऽयं, सुष्वाप तत्रैव वसन्तसेना। वाराङ्गना तत्समये च काचिन्मनोविनोदाय समागताऽथ // 135 // .. अर्थ-मार्ग में चलते 2 यह थक गया था. सो उस थकावट के कारण इसे निद्रा आगई. इतने में वसन्तसेना नामको एक वेश्या चित्त बहलाने के लिये वहां पर आई // 135 // રસ્તામાં ચાલવાથી તે થાકી ગયો હતો અને તેને લીધે તેને ઉંઘ આવી ગઈ એટલામાં વસન્તસેના નામની એક વેશ્યા મનોવિદ માટે ત્યાં આવી f135 कोऽयं युवा मन्मथतुल्यरूपो भ्रान्तेः पथो वान्तर्हितविसगः। स्थानातिकमागाच विनिद्रयाऽसौ वशीकृतो वात्र कथं प्रसुप्तः // 136 // अर्थ-कामदेव के जैसी आकृतिवाला यह युवा है कौन ? (मालूम पडता है) यह रास्ता भूल गया है. इसलिये गन्तव्य स्थान पर जाने के लिये यह उदासीन हो गया है. यह आया क्यों ? और क्यों निद्रा के वशीभूत होकर यहां सोया हुआ है ? // 136 // કામદેવ જેવા સ્વરૂપવાન આ યુવાન કેણ હશે? (મને લાગે છે કે આ રસ્તો ભૂલી ગે છે. તેથી જવાના સ્થાન પર જવા તે ઉદાસી છે. અહીં કેમ આવ્યો હશે? અને નિદ્રા ધીન થઈને અહીં કેમ સૂતો હશે ? 136 इत्यादिभिः कल्पनिभैर्विकल्पै, सालिङ्गिता वीक्ष्य च तं प्रसुप्तम् / पश्चाद्गले साऽथ लुलोक तस्य लंबायमानं दलमेव शुभ्रम् // 137 // . अर्थ-इस प्रकार उसे सोया हुआ देखकर वह वसंतसेना कल्पकालकेजैसे अपरिमित विकल्पों में पड गई. बाद में उसने उसके गले में लटकता हुआ एक सफेद पत्र देखा. // 137 //
SR No.004486
Book TitleLonkashah Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1983
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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